Book Title: Salaka Purush Part 1
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 270
________________ REFE अतएव तत्त्वान्वेषण के काल में व्यवहार मुख्य रहता है और अनुभूति के काल में निश्चय । इसप्रकार व्यवहार की भी उपयोगिता है, व्यवहार को पूर्णरूप से उड़ाया नहीं जा सकता। | आगम में जो ‘पर्याय को गौण करके' लिखा है, वहाँ गौण का अर्थ पर्याय की सत्ता की अस्वीकृति नहीं है तथा 'मुख्य सो निश्चय और गौण सो व्यवहार' - इन परिभाषाओं का अर्थ यह नहीं है कि - निश्चय | को सदैव मुख्य रखना चाहिए और व्यवहार को सदैव गौण रखना चाहिए। द्रव्यार्थिकनय के विषय को गौण | करके और पर्यायार्थिकनय के विषय को मुख्य करके।' ऐसा भी उसी आगम में लिखा मिलता है; परन्तु | इस बात की ओर ध्यान न देकर यदि मात्र एक पक्ष को ही ग्रहण करेंगे तो एकान्त होगा। अत: ऐसा समझना चाहिए कि - जो-जो पर्यायार्थिकनय के विषय हैं, उनकी पर्यायसंज्ञा है और जो-जो द्रव्यार्थिकनय के विषय हैं, उनकी द्रव्यसंज्ञा है। जिनकी द्रव्यसंज्ञा है, वे दृष्टि के विषय में शामिल हैं और जिनकी पर्यायसंज्ञा है, वे दृष्टि के विषय में शामिल नहीं हैं। इसप्रकार अध्यात्म में गुणभेद, प्रदेशभेद, द्रव्यभेद एवं कालभेद - इन सबकी पर्यायसंज्ञा है। ये दृष्टि के विषय में सम्मिलित नहीं हैं। सामान्य, अभेद, नित्य और एक - इन चारों की अखण्डता द्रव्यार्थिकनय का विषय है, इनमें भी जो इनका ये चारपना है, वह दृष्टि का विषय नहीं है; क्योंकि वह पर्यायार्थिकनय का विषय है। श्रोता का प्रश्न - प्रभो ! मुख्य-गौण का सही स्वरूप क्या है ? सुनो ! जिसे गौण करना हो, उसका निषेध न करके उसके बारे में कुछ न कहना ही गौण करना है, निषेध करते ही तो वह मुख्य हो जाता है। चाहे प्रतिपादन करो या निषेध - दोनों में ही मुख्यता हो जाती है। जैसे - दृष्टि के विषयभूत आत्मा में पर्याय नहीं है - ऐसा कहकर हमने पर्यायों को गौण नहीं किया, बल्कि मुख्य कर दिया। गौण तो उस विषय में चुप रहने का नाम है। किसी घटना को या किसी व्यक्ति को बार-बार याद करने एवं किसी न किसी रूप में उसे व्यक्त करते || रहने का नाम गौण करना नहीं है, बल्कि उसे अचर्चित करना ही गौणता का लक्षण है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278