Book Title: Sahajanandghan Guru Gatha
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 152
________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा • हुआ है कि 1943 के महेसाणा चातुर्मास के गुरुकुल वास के बाद अपने गुफावास एकलप्रवास के दौरान वे 1960 के पहले कभी अकेले वहाँ पधारे हैं। उनके संग बद्रीकेदार की यात्रा में गए हुए कलकता के विजयबाबू बड़ेर ने हमारे इस विषय के संशोधन में कुछ संकेत दिए हैं जो स्पष्ट करते हैं कि उनके संग की यात्रा के दौरान नहीं, अन्य किसी समय वे अष्टापद दर्शनार्थ पधारे हैं। स्व. विजयबाबू का हमने 1993 में इन्टरव्यू लिया था, जो 'सद्गुरु-स्मृति' शीर्षक कैसेट टेइप में रिकार्ड किया गया है। उसमें से इस विषय-संबंधित हमारा निम्न-प्रश्नोत्तर हमारे संशोधन को पुष्ट करता है और अनेकों के संदेहों पर प्रकाश डालता है: प्रश्न : अकेले गए थे न वे तो, अष्टापद खोजने ? विजयबाबू : वह तो दूसरी कोई बार । प्र. : पूज्य माताजी ने मुझे कहा था कि प्रभु अष्टापद गए थे। वि. : आगे (पहले) किसी बार गए हों तो संभव है। प्र. : पर कब गए थे यह जानना चाहता हूँ? वि. : आगे कभी गए थे अवश्य । गुरुदेव अष्टापद का साक्षात् प्रत्यक्ष दर्शन कर चुके थे। प्र. : वही वही बात । उस समय आप भी यात्रा में साथ नहीं थे ? वि. : नहीं, नहीं। प्र. : तो जब वे गये तब कैसे गए होंगे ? वि. : अकेले । (प्र. अकेले कैसे ?) आज मनुष्य के महापुरुष जो होते हैं वे कहीं इच्छा करें तो स्व-शरीर से भी जा सकते हैं, या वैक्रिय शरीर से । अपने दाहिने हाथ के ऊपर कमल है वहाँ पर वे भावना करें तो वैसे ही शरीर के आकार का पुतला तैयार हो जाता है। जिस कद का पुतला बनाना हो ऐसा बना सकते हैं । और वो twincle of an eye में (पलकारे में ) जहाँ सोचे वहाँ जा सकते हैं । तो गुरुदेव अष्टापद का पूरा दर्शन करने गए थे.... वहाँ पर हमने एक दिन पूछा कि कहाँ ? तो बोले : "वहाँ पर बीच में जो मंदिर है वहाँ पर ऋषभदेव भगवान के देढ़ फिट ऊँची प्रतिमाजी है pure हीरे के ! दर्शन करते ही कोटि सूर्य का प्रकाश हो गया !!" .. तो सूक्ष्म शरीर से भी जा सकते हैं और गुरुदेव भी जाते थे - महाविदेह क्षेत्र, अष्टापद, सब सूक्ष्म शरीर से भी जा सकते थे, स्थूल शरीर से भी जा सकते थे । . प्र. : दोनों रूप से जा सकते थे ? वि. : हाँ. र्जधाचरण विद्याचरण जो... (इन्टरव्यू टेइप समाप्त) सारांश में प्रारम्भ में वर्णित गुरुदेव द्वारा अष्टापद तीर्थ निर्माण की आयोजना, स्वचिंतन, विजयबाबू कथन, पूज्या माताजी-कथन सभी के ऊपर प्रत्यक्ष अष्टापद दर्शन विषय मे स्वयं गुरुदेव ही यह मुहर ज्ञानपिपासु स्व. श्रीमती सविताबेन छोटुभाई अजमेरा की प्रश्न-पृच्छा के उत्तर में लगाते हैं :- "अष्टापद पर तीन चौबिसियाँ हैं । बहत्तर (72) जिनालय हैं । भूत, भावि और वर्तमान रत्न प्रतिमाएँ हैं, जिन्हें भरत राजा ने बनवाई हैं । यहाँ अपने पास परमकृपाळुदेव की पद्मासन मुद्रा में जो प्रतिमा है, उससे थोड़ी बड़ी है।... अभी हम जिस अष्टापद का दर्शन (132)

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