Book Title: Saddharm Bodh
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Nanebai Lakhmichand Gaiakwad

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Page 92
________________ [ ८८ ] पकड के पल्ला जगादो ॥ १॥ भवसिन्धु में मेरी नौका पडी है । आप इसे मल्लाह होके तिरादा ॥ २ ॥ काम क्रोध मद मोह चोर हैं । इस डाकू से मुझको बचादो ॥३॥ संसारका नाता झूठा है त्राता। मुझे मुक्तिके मार्ग लगादो।४। चौथमल कहे गुरुजी मुझको। त्रिशलानन्दसे बेग मिलादो ५ श्रीपाश्वनाथजीका स्तवन. - श्रीचिंतामणस्वामी अंतरजामी कृपा करोनी महाराज ॥ टेर ॥ दुहा। सेवक ऊबो, ब कर जोडी सुण लीजो करतार । दीनदयाल दया कर दीजो । विनवू नार हजार हो ॥१॥ श्रीचिंतामणस्वामी ॥ खटपटना हवे काम नहीं हे । चटपट निजर नीहार । झटपट करता । बाले सेवक झट. पट अरज गुंजार हो ॥२॥ श्रीचिंतामणस्वामी ।। अवगुण मारा आज तकरा माफ करो तकशीर । लुळलुळ चरणाम शीष नमावू । भजो, भव भव वीर हो ॥३॥ श्रीचिंतामणस्वामी ।। मात पितासे बालक बोले, बोले तुतला बोल । ऐसा वृद्ध विचार सायबा दिलरी गुंडी खोल दो ॥४॥ श्रीचिंतामणस्वामि ॥ शुद्धबुद्ध आपो, दुरगत कांपो बापू पार्श्वनाथ । अश्वसेन भोमाजीके नंदा, तो दुनिया जोडे हात हो ॥५॥ श्रीचिंतामणस्वामि।। येहेर करावा, मत ललचावो पालो अमि. रसपान । टुंकी एक मेर करो महाराजा, मत करजो अपमान हो ॥६॥ श्रीचिंतामणस्वामि ॥ दास तुमारो पुत कपुता पुत सपुताजाण । मोहन सुत बादलकी अनी लिनी आप पहचान हो ||७| श्रीचिंतामणस्वामी ।।

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