Book Title: Sachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Author(s): Shankarmuni
Publisher: Shivchand Nemichand Kotecha Shivpuri

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Page 49
________________ मुखवस्त्रिका। [१५] ONT करना चाहे तो सत्यका, अन्यथा वह दुरग्रही सावित होगा। और विजय लक्ष्मी भी उसको प्राप्त नहीं होगी। कोई मनुष्य जब किसी नये विखेड़े को खड़ा करता है तो संसार के सम्मुन वह झूठा प्रमाणित होने पर भी उसकी दुम पकड़े हो रहता है। परतु यह उसकी कम जोरी है । अपराध और भूल को स्वीकार नहीं करना हृदय दौर्बल्य है ! मानसिक निर्वलता है। अच्छे अादमी एसा कभी नहीं करते । वे अपनी भूलों का लोगों के सामन रखन में कभी नहीं हिचकिचात । बल्के खुल शब्दों में उसे स्वीकार करके अनजान मनुष्यों को सचेत करते हैं कि, उनके तरह और कोई ऐसी भूल न कर बैठे । महान् पुरुषों की छोटी २ भूलों ने संसार में बहुत बड़ा विगाड़ किया बड़े आदमियों और समाज के नेताश्रा पर समाज के हानि, लाभ का बहुत बड़ा दायित्व है। इसलिए कि, 'महाजनो येन गतः स पंथः 'इस उक्ति के अनुसार छोटे आदमी सदा से वड़ों का अनुकरण करते श्राए हैं। यदि बड़े कोई गलती करजाए और उसको वे छुपा कर उसका सुधार न करले तो छोटे तो उस भूल को ही अपना श्रादर्श मानलत है और उससे समाज की कितनी हानि होजा सकती है इसको विचारशील पाठक सोच सकते हैं। हां, अच्छे और बुरे को सोचे विना ही वड़ों का अनुकरण करना निरान्ध विश्वास जरूर है । परन्तु जिन में सोचने की ताकत ही नहीं है वे बड़ों के नाम पर बिकते रहें तो इस में श्राश्चर्य ही क्या है। ऐसे ही मुख वस्त्रिका को पहले किसी एक ने प्रमादवरा यद्वा मुह पर बान्धने की अटपटी

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