Book Title: Ratnatraya Part 02
Author(s): Surendra Varni
Publisher: Surendra Varni

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Page 792
________________ भी हस्तक्षेप नहीं करता है । जो धर्मात्मा बनकर दूसरों के जीवन में हस्तक्षेप करता है, उसने मात्र ऊपर से धर्म का चोला पहन रखा है । उसके भीतर धर्म नामकी कोई चीज नहीं है। उसने धर्म के मर्म को सही ढंग से पहचाना ही नहीं है। मनुष्य पर्याय की प्राप्ति अत्यन्त दुर्लभ है, अतः व्यर्थ के राग-द्वेष छोड़कर इसका उपयोग मुक्ति करने हेतु करना चाहिये । यह आज का जो दुर्लभ अवसर पाया है, उसे व्यर्थ न खोयें । अभी सद्बुद्धि पाई है तो उसका सदुपयोग कर लें। यदि यह अवसर खो दिया, तो न जाने पेड़, कीड़े-मकोड़े क्या-क्या बनकर दुर्दशा भोगेंगे। जब तक यह जीव अज्ञानी है, तब तक संसार में परिभ्रमण करता रहता है । इसका अपने आत्मस्वरूप की महिमा का पता नहीं, इसलिये चारों गतियों के दुःख उठाना पड़ रहे हैं। अब अपने आप पर दया करो, व्यर्थ कष्ट मत भोगो, विकल्प जाल बढ़ाकर अपने को अशान्त मत बनाओ । एक इस अन्तस्तत्त्व का बोध करके इस ही एक आत्माराम में, आत्मज्ञान में, अपने को रमाओ और सदा के लिये मुक्त होने का उपाय बनाओ । यह संसार तो एक मानो वह फड़ है, जहाँ जुआ खेला जाता हो । वहाँ कोई फँस जाय, कोई दो चार आने का दाँव लगा बैठे, तो वहाँ फिर ऐसी धारा हो जाती है कि हारे तो खेलना, जीते तो खेलना । ओर खेलते-खेलते बहुत कुछ हार गए और थोड़े-से पैसे रह गये जेब में और सोचा कि हमें घर चलना चाहिये, तो उस फड़पर बैठे हुए जो लोग हैं उनकी वाणी, उनके बचन, उनका व्यवहार ऐसा होता है कि वह वहाँ से भागने में समर्थ नहीं हो पाता। तो जैसे वह खिलाड़ी उस जुवे फड़ से निकल नहीं पाता, इसी तरह एक बहुत बड़ी असुविधा है ज्ञानबल पाये बिना । कोई कुछ थोड़ा चाहता है कि 777

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