Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master

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Page 179
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३६ www.kobatirth.org विस्तृत विवेचन सहित लौकिक और पारमार्थिक दोनों ही प्रकार के कार्यों की सिद्धि आत्म-तत्त्व की के लिये आदर्श की परम आवश्यकता है । उपलब्धि के लिये सबसे बड़ा आदर्श दिगम्बर मुनि ही, जो निर्विकारी है, जिसने संसार के सभी गुरुडम का त्याग कर दिया है जो आत्मा के स्वरूप में रमण करता है, जिसे किसीसे राग-द्वेष नहीं है, मान-अपमान की जिसे परवाह नहीं हो सकता है । ऐसे मुनि के आदर्श को समक्ष रखकर साधक तत्तुल्य बनने का प्रयत्न करेगा तो उसे कभी न कभी छुटकारा मिल ही जायगा । दिगम्बर मुनि के गुणों की चरम अभिव्यक्ति तीर्थकर अवस्था में होती है, अतः समस्त पदार्थों के दर्शक, जीवन्मुक्त केवली अन्त ही परम आदर्श हो सकते हैं। जाती हैं । | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधक के लिये सिद्धावस्था साध्य है, उसे निर्वाण प्राप्त करना है । चरम लक्ष्य उसका मोहक संसार से विरक्त होकर स्वरूप की उपलब्धि करना है । जब वह अपने सामने श्रर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु के स्वरूप को रख ले, उनके विकसित गुणों में लीन हो जाय तो उसे श्रात्म-तत्व की उपलब्धि हो जाती है 1 आडम्बर जन्य क्रियाएँ जिनका आत्मा से कोई सम्बन्ध नहीं, जो सिर्फ संसार का संवर्द्धन करने वाली हैं, छूट अतः प्रत्येक व्यक्ति को श्रन्न, सिद्ध, For Private And Personal Use Only

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