Book Title: Raman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Author(s): Aathar Aasyon
Publisher: Shivlal Agarwal and Company

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Page 208
________________ लिखित रचनाएँ १७६ तुम्हें धोखा देकर, मेरे अन्दर कौन प्रवेश कर सकतर है ? यह तो केवल तेरी जादूगरी है। एक पौराणिक कथा है कि एक बार ऋपियो की एक मण्डली अपने परिवारो के साथ वन में कर्मकाण्ड, भक्ति के क्रियाकलापो तथा मन्त्रसिद्धि मे लीन थी। इसके द्वारा उन ऋपियो ने अति प्राकृतिक सिद्धियां प्राप्त कर ली थीं और इस प्रकार वह मोक्ष-प्राप्ति की आशा करते थे । यहाँ वह गलती पर थे। उन्हें उनकी गलती का दण्ड देने के लिए, भगवान शिव एक शिक्षक के रूप में प्रकट हुए। उनके साथ मोहिनी के रूप में विष्ण भी थे। सभी ऋपि मोहिनी के और उनकी पलियां शिव के प्रेमपाश मे आवद्ध हो गयी। इसका परिणाम यह हुआ कि उनका मानसिक सन्तुलन जाता रहा और उनकी सिद्धियां लुप्त होने लगी। ऐसा देखकर उन्होंने यह निर्णय किया कि शिव उनका शत्रु है। उन्होने सर्पो, चीते और हाथी को ऐन्द्रजालिक क्रिया से अपने वश मे किया और शिव के विरुद्ध भेजा। शिव ने सौ की तो माला बना ली और चीते तथा हाथी की हत्या करके चीते की खाल की लंगोटी बना ली और हाथी की खाल को वह शाल के रूप में प्रयोग करने लगे। ऋपियो ने शिव की महान शक्ति को पहचाना, उसके सम्मुख नतमस्तक हुए और उनसे उपदेश देने की प्रार्थना की। फिर शिव ने ऋपियो को उनको गलती बतायी कि कम द्वारा कम-व धन से छुटकारा नही हो सकता, कम तो साधन है, सृष्टि का कारण नही। कम से परे चिन्तन की ओर जाना आवश्यक है। कवि और भक्त मुरुगानार ने तमिल कविता मे इस कहानी को लिखा, परन्तु जब वह उम स्थल पर पहुँचे जहाँ शिव ऋषियों को उपदेश देते हैं, उन्होंने भगवान से पूछा कि इसे लिखने वाला शिव का अवतार कौन है । इस पर भगवान् ने उपवेश सारम् की रचना की। इसमे उन्होंने प्रारम्भ में निस्वाय काय की चर्चा की और कहा कि यह लाभदायक है। परन्तु मन्त्रोच्चारण अधिक लाभदायक है और मौन मत्रोच्चारण उच्च स्वर से किये जाने वाले मन्योच्चारण से अधिक प्रभावशाली है । शान्त चिन्तन इससे भी अधिक प्रभावशाली है। श्रीभगवान् ने तीस पदो का सस्कृत में अनुवाद किया और इस सस्कृत रूपान्तर को धर्मग्रन्य का महत्व दिया जाता है। प्रतिदिन वेद-मन्त्रों के साथ साथ श्रीभगवान् के सम्मुख इसका भी गान होता पा और अव उनको ममाधि के सम्मुख इसका गान होता है। श्रीभगवान् द्वारा उपदिष्ट सिद्धान्त इस कविता में तथा उल्लादू नरपवू या मत्ता नम्ब धौ चालीस पदो मे, जिसमे चालीस पदी का एक अन्य परिशिष्ट भी मम्मिलित है, विस्तृत श्प में वर्णित है।

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