Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Prachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur

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Page 189
________________ [ १६१ ] '. (८२) वैकुण्ठदास (१३१)-इनके रचित स्वरोदय ग्रन्थ के अतिरिक्त कुछ भी ज्ञात न हो सका। - . . . . . (८३) शिवराम पुरोहित (७५)-ये नागौर के निवासी थे बीकानेर नरेश । अनूपसिंहजी ने इन्हें सम्मानित किया था। कवि ने उन्हींकी आज्ञानुसार 'दशकुमार प्रबन्ध' सं० १७५४ के मिगसर सुदी १३ मंगलवार को बनाया । ग्रन्थ के प्रारंभ में कवि ने अपने गुरु मेघ को नमस्कार किया है । पता नहीं वे कौन थे। (८४) श्रीपति (१५)-आपकी 'अनुप्रासकथन' रचना के अतिरिक्त विशेष वृत्त ज्ञात नहीं है। - '. (८५) सतीदासव्यास (३१)-ये देवीदास व्यास के पुत्र देवसी के पुत्र थे। आपने बीकानेर-नरेश अनूपसिंहजी के समय सं० १७३३ माघ सुदी २ को 'रसिकबाराम' ग्रन्थ बनाया। (८६) समरथ (४८,१३७ ) खरतरगच्छीय सागरचन्द्रसूरि सन्तानीय मतिरत्न के शिष्य थे । इनका दीक्षितावस्था का नाम 'समयमाणिक्य' था। इनके रचित रसमंजरी वैद्यक (सं० १७६४ फागुन ५ रवि, देरा) ग्रन्थ वनमाली के आग्रह से और रसिकप्रिय संस्कृत टीका (सं० १७५५ सावन सुदी ७ सोमवार, सिन्ध प्रान्त के जालिपुर में रचित ) का विवरण इसी ग्रन्थ मे दिया गया है। इनके अतिरिक्त (१) बावनीगाथा ५५ एवं मल्लिनाथ पंचकल्याणक स्तवन (सं० १७३६ भादवा सुदी ५ बन्नुदेश सक्कीग्राम ) उपलब्ध हैं। (८७) स्वरूपदास (.१४)-ये पहले चारण थे फिर सन्यासी होगये। पांडवयशेन्दुचंद्रिका (सं० १८९२ चैत बदी ११) इनकी प्रसिद्ध रचना है जो प्रकाशित भी हो चुकी है । आपके अन्यग्रन्थ वृत्तिबोध (सं० १८९८ माघ बदी १ सेवापुर) का विवरण प्रस्तुत ग्रन्थ में दिया गया है । इसमें विवरण गद्य में है। मिश्र-बन्धु-विनोद के पृ० १००८ में इनके पांडवयशचंद्रिका का उल्लेख अज्ञातकालिक प्रकरण मे किया गया है पर इस ग्रन्थ में कवि ने रचनाकाल सं० १८९२ स्पष्ट दिया है। विनोद में इनके आश्रयदाता राजा बलवंतसिंह रतलाम का निर्देश है। (८८) सागर ( २,५,६२)-इनके रचित अनेकार्थी नाममाला, धनजी नाममाला और रागमाला उपलब्ध हुई है। कवि ने अपना परिचय एवं समय कुछ भी नहीं दिया है।

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