Book Title: Puran aur Jain Dharm
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 112
________________ पुराण और जैन धर्म (क) जैन-मत बौद्ध-मत से निकला और उसका शाखामात्रहै। , (ख) जैन और बौद्ध-मत एक ही हैं, इनके चलाने वाले एक ही पुरुप है वह प्रथम बुद्ध था बाद में जैन बन गया इत्यादि। ४-इसके सिवा पुराणों के उल्लेख से एक बात यह भी प्रकट होती है कि उस समय की वैध पशु हिसा का बड़ा जोर था जैन और उसके परवर्ति बुद्ध धर्म ने उसे रोकने के लिये बड़ा प्रयत्न किया और इस कार्य में उसे बड़ी भारी सफलता प्राप्त हुई। [जैन समाज के नेताओं का कर्तव्य जैन-धर्म के विषय में अनेक प्रकार के जो मिथ्या विचार फैल रहे हैं उनका अधिकांश दोप वर्तमान समय के जैन विद्वानों और मुख्य नेताओं पर है। यदि वे चाहते तो इस विषय में बहुत सा अन्धकार दूर हो सकता था, परन्तु शोक है कि उन्हें आपस की गृहकलह से ही मुक्ति नहीं मिलती । अतः उनको मुनासिब है कि जैन सिद्धान्तों को यथार्थ और स्पष्ट रूप से जनता के समक्ष रखने का प्रयत्न करें ? समय का प्रवाह अव बदल रहा है । जैन समाज के हृदय से मतवाद के भाव कुछ कम हो रहे हैं, जिज्ञासा की तरंगें प्रति दिन उमड़ रही हैं । हर एक मत के सिद्धान्तों को प्रेम पूर्वक नने और उपयुक्त एवं यथार्थ सिद्धान्त को अपनाने के लिए अब जनता तैयार है। अतः यह समय चूकने का नहीं। यदि जैन सिद्धान्तों में सच्चाई होगी, यदि जैन दर्शन में अन्य दर्शनो की

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