Book Title: Priy Shikshaye
Author(s): Mahendrasagar
Publisher: Padmasagarsuri Charitable Trust

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Page 139
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (18) www. kobatirth.org दृष्या भगवतदोषा: " संसार के दोषों का दर्शन करना " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूरज पूरब की ओर उदित होता है और उसी क्षण से ही पश्चिम की ओर अपनी यात्रा की शुरूआत कर देता है। इसी तरह मनुष्य जन्म लेता है और जन्म पाते ही मृत्यु की ओर अपने पाँव बढ़ाना शुरू कर देता हैं। यही कारण है कि मनुष्य का जन्म अनित्यता की गोद में होता है । अनित्यता का पाठ वह जन्म के साथ ही पढ़ना शुरू कर देता है। जहाँ जीवन है, वहाँ मृत्यु भी है, जहाँ दुःख है, वहाँ सुख भी है। जहाँ सफलता है वहाँ निष्फलता भी है। इस संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है। बगीचे में भँवरे की जो गुनगुनाहट आप सुन रहे हैं, वह भी कुछ समय तक ही है। जो फूल आज खिले हैं, वे कल मुरझा जाएँगे । जिस कोयल की सुरीली स्वर लहरियाँ आज हमें मदमस्त बना रही हैं, जाड़े के मौसम में वह उड़ जाएगी। जहाँ ऋतुराज बसंत भी हमेशा नहीं ठहरता वहाँ किसी भी चीज का चिर सम्मेलन कैसे संभव है! सरिता में आया पानी आगे बढ़ने ही वाला है, वह लौटकर नहीं आएगा। पानी बहता हुआ आगे ही चला जाता है। वह उसी रास्ते से वापस नहीं आएगा। इस बहते पानी का नाम ही जीवन है। हमने एक दिया जलाया। हर आदमी सोचता है कि दिया जल रहा है। इसका एक पक्ष और भी है। जल रहा दिया प्रतिपल बुझता भी चला जा रहा है । लौ पैदा हुई, आगे बढ़ी और बढ़ने के साथ ही खत्म भी हो गई । लौका एक तांता जरूर लगा रहता है। हम सफर करते हैं। साथ में सफर करने वालों से दोस्ती हो जाती हैं। कितने ही अजनबी हमारे मित्र बन जाते हैं। हम साथ-साथ बैठते हैं। साथ-साथ खाना खाते हैं। एक दूसरे को अपना सुख - दुःख कहते, सुनाते हैं। आदमी मूर्खताएँ करता है। गाड़ी स्टेशन पर रूकी। आदमी उतर गया और वहाँ की रंगिनियों में खो गया । जब गाड़ी चलने लगी तो चिल्लाया अरे रोको! रोको! गाड़ी रोको! मैं यही रहूँगा। स्टेशन 133 For Private And Personal Use Only

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