Book Title: Prit Kiye Dukh Hoy
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 293
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८१ एक अस्तित्व की अनुभूति ___ 'वह परदेशी मेरा पति अमरकुमार है...। मैं उसकी पत्नी हूँ... मेरा नाम सुरसुंदरी है।' 'तो फिर यह पुरूष वेष... पुरूष रूप...?' 'विद्याशक्ति है मेरे पास, महाराजा! विद्याशक्ति से मैं मनचाहा रूप बना सकती हूँ...' 'तो मेरे समक्ष, मेरे देखते हुए तू स्त्री का रूप बना सकेगा? कर दिखा?' विमलयश ने वहीं पर पद्मासनस्थ बैठकर रूपपरिवर्तिनी विद्या का स्मरण किया...। वह स्त्री-रूप हो गया...। महाराजा भीतर के कमरे में जाकर गुणमंजरी के कपड़े ले आये। विमलयश ने वह वस्त्र धारण कर लिए | ___ 'ओह... तू तो सचमुच की स्त्री है... पर यह रूपपरिवर्तन क्यों करना पड़ा तुझे?' 'महाराजा, वह बड़ी दास्तान है, पर आपको तो बतानी ही होगी। मैं इसलिए यहाँ पर अभी आयी हूँ। ताकि आपके मन में मेरे लिए कुछ भी गलतफहमी ना रहे।' सुरसुंदरी ने अपने नगर, माता-पिता, सास-ससुर वगैरह का परिचय दिया। इसके बाद अमरकुमार के साथ विदेशयात्रा पर निकलना और यक्षद्वीप पर अमरकुमार उसका त्याग करके चला जाना .. तब से लगाकर बेनातट नगर में रत्नजटी का उसे छोड़ जाना -वहाँ तक की सारी बातें कह सुनायी...| महाराजा गुणपाल तो सुरसुंदरी की जीवनकहानी सुनकर स्तब्ध हो उठे। 'सुरसुंदरी... बेटी, श्री नवकार मंत्र का प्रभाव तो अद्भुत है ही... पर तेरा सतीत्व कितना महान है! उस सतीत्व के प्रभाव से ही तेरे सारे दुःख दूर हुए... सुख आये... राज्य मिला।' 'महाराज, उस सतीत्व की सुरक्षा नवकारमंत्र के प्रभाव से ही हो पायी। यदि वह महामंत्र मेरे पास नहीं होता, तो मैं जिंदा ही नहीं रहती!!!' __ 'तेरी बात बिलकुल सही है बेटी... पर अमरकुमार ने तेरे साथ भयंकर अन्याय किया है! ____ 'मेरे ही पूर्वजन्म के पापकर्म उदय को प्राप्त हुए। वरना उन जैसे गुणी पुरूष मेरा त्याग न करते! हर एक आत्मा को अपने किये हुए शुभाशुभ कर्म भुगतेन ही पड़ते हैं। मेरे अशुभ कर्म उदित हुए... और फिर शुभ कर्मों का For Private And Personal Use Only

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