Book Title: Prey Ki Bhabhut
Author(s): Rekha Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 24
________________ अनुकूल वायु की प्रेरणा के कारण जलयान कुछ ही दिनों में सुन्दर बब्बर कूल के निकट पहुँच गया । सामान को उतारा जाने लगा। समुद्र | तट पर जलयान के लगते ही व्यापारी सामान लेने के लिए आ गये । यह नगर भी धन जन से सुशोभित बब्बर नाम का था और यहाँ पर सोना. रत्न आदि पदार्थों की प्रचुरता थी। नगर की शोभा अद्भुत थी। इसकी अट्टालिकाएं आकाश को छूती थी और तिमंजिले, चौमंजिले भवन हृदय को संतुष्ट कर देते थे। इस नगर का व्यवस्थापक इन्द्रसेन नामक व्यक्ति था। इसके यश से सभी दिशाएँ उज्जवल थी। धन धान्य से समृद्ध होने के साथ शासक अत्यन्त पराक्रमी और वैभवशाली था । यहाँ की जनता सभी प्रकार सुखी और प्रसन्न थी। AA मा RA ti इस नगर में वारांगनाओं का एक मोहल्ला था, इस मोहल्ले में सात सौ गणिकाएं निवास करती थी और इन सब की स्वामिनी हरिणीनाम की गणिका थी। सभी गणिकाएं धनार्जन करती थी और उस धन का एक निश्चित अंश हरिणी को देती थी। हरिणी अपनी आयका चतुर्थांश राजा को कर के रूप में देती थी। जब हरिणी को ज्ञात हुआ कि जम्बूद्वीप का कोई धनी सार्थवाह आया है। तो उसने अपनी दो दासियों को बहुत सुन्दर मूल्यवान वस्त्र देकर भेजा और कहलवाया कि आज मेरे घर का आतिथ्य स्वीकार कीजिये । यह राजाज्ञा है, इसे स्वीकार करना आवश्यक है। मुझे आप की स्वामिनी से मिलने की आवश्यकता नहीं। हमारे कुलकी यह परम्परा है कि किसी | भी वेश्या के घर नहीं जाना । तुम्हारी स्वामिनी को धन की आवश्यकता है, अतः आठ सौ द्रम्म लेकर चली जाओ। प्रेय की भभूत

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