Book Title: Pravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Author(s): Bhuvansuri
Publisher: Vijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad

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Page 489
________________ बोधक सुवाक्यं..... - (१९) एक खराव भावना से प्रसन्न चन्द्र राजर्षिने सातवीं - नरकका वन्ध करने के कारण इकट्ठे किये थे फिर भी क्षण भर में उत्तम भावना के वल से केवल ज्ञान को ....... प्राप्त हुये। . . . . (२०) अपन वर्षों से धर्म कर रहे फिर भी मोक्षको नहीं ... प्राप्त हुए. उसका कारण भावना की कचास है। जव तक आवअन्तर में नहीं आवें तव तक मोक्ष * मिलना अशक्य है। (२१) करगडमुनि रोज वापरते थे फिरभी भावनाधिरूढ वनके केवल ज्ञान को प्राप्त हुए। सचमुच "भावना भवनाशिनी' .. . (२२) जैनकुल में जन्मे हुए प्रत्येक जैनको कम से कम .. सुबह नवकारशी का पच्चक्खाण और सामको चौविहार का और न बने तो तिविहार का पच्च. .. क्खाण करना चाहिए । (२३) जिनेश्वर के दर्शन ले पाप नाश होते हैं। और कर्म . की वेल छिद.जाती है। (२४) शासन का सच्चा ङ्गार वही जो शासन को सम र्पित बने । . . . . (२५) जिस मनुष्य का अन्तर मलिन है वह मनुष्य स्वप्न में भी सुख नहीं प्राप्त कर सकता है। (२६) संत पुरुपों की सम्पत्ति ये परोपकार के लिए ही होती है। . . . (२७) पाप करते समय मानवी पाप को डरता डरता करे ...... तो कर्मवन्धन कम होता है। (२८) जिनेश्वरके वचन पर जिस मनुष्य को पूर्ण श्रद्धा है वह मनुप्य कल्याण को सिद्ध कर सकता है। i

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