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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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। तिथि चैत्र चतुर्थी श्यामा, श्री पार्श्वप्रभु गुणधामा। ।
केवल लहि तत्त्वप्रकाशा, हम पूजत कर शिव आशा।। ॐ हीं चैत्रकृष्णचतुर्थ्यां श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।।२३।।
दशमी वैशाख सुदि को, श्री वर्धमान जिनजी को।
उपजो केवल सुखदाई, हम पूजत विघ्न नशाई।। ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लदशम्यां श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ॥२४॥
जयमाला
( सृग्विणी) जय ऋषभनाथ ज्ञान के सागरा, घातिया घातकर आप केवल वरा। कर्मबन्धनमई सांकला तोड़कर, आपका स्वाद ले स्वाद पर छोड़कर ।।१।। धन्य तू धन्य तू धन्य तू नाथ जी, सर्व साधू नमें तोहि को माथ जी। दर्श तेरा करें ताप मिट जात है, कर्म भाजै सभी पाप हट जात हैं।।२।। धन्य पुरुषार्थ तेरा महा अद्भुतं, मोहसा शत्रु मारा त्रिघाती हतं । जीत त्रैलोक्य को सर्वदर्शी भए, कर्मसेना हती दुर्ग चेतन लए।।३।। आप सत्-तीर्थ त्रयरत्न से निर्मिता, भव्य लेवें शरण होंय भव-भव रिता। वे कुशल से तिरें संसृती सागरा, जाय ऊरध लहें सिद्ध सुन्दर धरा ।।४।। यह समवशर्ण भवि जीव सुख पात हैं, वाणि तेरी सुनें मन यही भात हैं।
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