Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Ajitshekharsuri
Publisher: Arham Aradhak Trust

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Page 535
________________ 503 परिशिष्ट-३साक्षिपाठानामकारादिक्रमः इमीसे णं रयणप्पभाए [समवायाङ्ग १७/४] इष्टापूर्तं न [अष्टक ४/८] १५८ इष्टापूर्त मन्यमाना [मुण्डकोपनिषद् १/२/१०] १५८ ४३६ २८२ ४८९ एस ठाणे अणारिए [सूत्रकृताङ्ग २/२/३२] एसा ठिईओ [विंशि० प्रक० ९/७] एसो पुण सव्वो [विंशि० प्रक० २०/८] ओ ओसन्नस्स गिहिस्स वि [उपदेशमाला ३५२] ओसरणे बलिमाई ओहारमग्ग० [बृहत्कल्पभा० ५६३३] P १३९ २१४ १३५ १३६ के ईश्वरीयाहुति [न्यायमाला] उ उच्यते कल्प [अष्टक २७/२] उत्पद्यते हि सावस्था उदयखयखओ० [जीवाभिगम ३/२/१४२ टी.] उद्धावणापहावण [व्यव० सू० १/९५२] उपमानाद् यदन्यस्य [काव्यप्रकाश १०/१५९] उवगारवगारि॰ [विंशि० प्रक० ११/३] उवयारंगा इह [विंशि० प्रक०८/१५] १७० ८८ ३१५ ५८ ४७० ३९९ १८७ ८७ एएसु भतिजुत्ता [मरणसमाधिप्रकीर्णक २०] ३३५ एए तु तओ [सूत्रकृताङ्ग १/१/२/२७] एगग्गया य झाणे व्यव० सू. १/९४५] ३१३ एगच्चाओ मिच्छा० [सूत्रकृताङ्ग २/२/३९] ४५० एगया गुणसमियस्स [आचाराङ्ग १/५/४/१५८] ३६० एगुप्पाएण तओ [विशेषाव. ७८७] एगो अपाहन्ने [उपदेशपद २५४] ११० एतदिह भावयज्ञः [षोडशक ६/१४] १९५ एतद्रागादिदं [योगबिन्दु १५९ पू.] ३९६ एतेषु च यद्यपि [भगवती १८/१०/६४६ टी.] २५० एतेहिं दोहिं [सूत्रकृताङ्ग २/५/९] १३७ एत्तो चरित्त० [सम्बोधप्रक० २०४] ३९६ एतो चिय णिद्दोसं [पञ्चाशक ७/३५] २१९ एत्तो च्चिय तत्तण्णू सम्बोधप्रक० २०९] एवं खलु देवाणु० [भगवती ३/१/१३०] एयं तु जं [महानिशीथ अ० ३, सू. २५] एवंविधेन यद् [षोडशक ७/१४] ४६९ एवं चिय जं चित्तो २७४ एवं न कश्चिद॰ [अष्टक २७/८] १३७ एवं विवाह. [अष्टक २८/५] २१९ एवं होइ विरोहो [व्यव० सू० १/९१२] एस अणुमओ च्चिय १३९ कइविहा णं भंते ! [भगवती २०/९/६८३-६८४] ३९ कति णं भंते ! [प्रज्ञापना २२/२८४-२८७] कत्थइ पुच्छइ [दशवै. निर्यु. ३८ पू.] २७९ कमलमनम्भसि [काव्यप्रकाशवृत्तौ] ३६ कम्मं जोगनिमित्तं [विशेषाव. १९३५] ४२९ कयरे ते जे [प्रश्नव्या० १/४] २६२ कर्मेन्धनं समाश्रित्य [अष्टक ४/१] १५७ कश्चिदाहास्य [अष्टक २७/१] १३५ कहि णं भंते ! [भगवती १०/६/४०७] ७२ काउं पि जिणाययणेहिं [महानिशीथ अ० ३, गा० ५८] २२२ काके कायॆम. कामं उभयाभावो [आव. नि० ११३४] ४०३ किञ्चिच्छुद्धं [प्रशमरति १४५] १३८ किञ्चेहाधिक० [अष्टक २८/६] २१९ कृषिकरण इव पलालं [षोडशक ७/१६] ४६९ केवलनाणेणत्थे [आव० नि० ७८] | कंचणमणिसोवाणे [महानिशीथ अ० ३, गा० ५६] २२२ किं चेहुवाइभेया [श्रावकप्रज्ञप्ति ५२] किं ते भंते ! जत्ता ? [भगवती १८/१०/६४६] २५० किं निस्साए णं भंते ! [भगवती ३/२/१४३] ___ ५९ किं मे पूर्वं श्रेयः ? [राजप्रश्नीय सू. १३२ टी.] क्रियाहेतुः पुष्टि १०८ ९९ ८५ खड्डातडंमि विसमे [पञ्चाशक ७/३९] ग ३१२ गरहावि तहा० [आव० नि० १०५० पू०] गहणसमयम्मि [कर्मप्रकृतिसङ्ग्रहणि गा० २९] गिहिणो वेयावडीयं दशवै० चू० २/९ पा० १] ३०९ ४३३ १३४

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