Book Title: Prastut Prashna
Author(s): Jainendrakumar
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 245
________________ विकासको वास्तविकता २२९ वैध स्वीकार करना है ही। वह तो स्थितिकी असमर्थता है। उससे अधिक उसे नहीं कहा जा सकता। प्रश्न-अगर यह दलील है तो अन्य मंत्रियों और कांग्रेसी अहिंसावादी मंत्रियोंमें इस नाते कौन-सा अंतर है ? । उत्तर-शायद विशेष अंतर नहीं है । सिवाय इसके कि कांग्रेसी मंत्री ऐसा करनेपर अधिक दुख अनुभव करते होंगे। प्रश्न-व्यक्तिगत हिंसा और स्टेटकी हिंसामें आप क्या अंतर समझते हैं? ___ उत्तर-व्यक्तिगत हिंसामें वासनाकी तीव्रता होती है, दूसरीमें वैसी तीव्रता नहीं होती है । फिर स्टेटकी हिंसा खुली हुई है और उसके साथ छिपावका वातावरण कम होता है । फिर जहाँ 'स्टेट' शब्द है, वहाँ उसमें कम बहुत हिंसा गर्भित है ही । कहा जा सकता है कि वह बहुत कुछ नैमित्तिक है, संकल्पी उतनी नहीं। प्रश्न-क्या आप स्टेटकी हिंसाको एक पवित्र कार्य भी कहेंगे? उत्तर --पवित्र नहीं कहूँगा, समाजिक कर्तव्य वह हो सकती है। पवित्रसे मेरा मतलब है कि शुद्ध भावनाका आदमी वैसी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेगा ही क्यों ? प्रश्न-तो क्या मैं यह समझें कि स्टेटके कार्यका भार लेनेवाले आदमी शुद्ध धर्मभावनावाले नहीं होते, न होने चाहिए ? उत्तर-और क्या ? लेकिन अपवादकी गुंजाइश है । वह इसलिए कि इतिहासमें कभी कभी राज्य-शासन और धर्म-शासन एक भी हो जाते हैं। अवतार पुरुष इसी कोटिके होते हैं । नीति और शक्ति, आदर्श और व्यवहार, मुक्ति और संसार, दोनोंको वे युगपत् साधते हैं। नहीं तो साधारणतया इनमें विरोध ही देखने में आता है। और उस समन्वयके अभावकी अवस्थामें सचमुच कोई धार्मिक व्यक्ति गवर्नर नहीं होगा। प्रश्न-अवतारकी आपने बात कही है, क्या आप कोई ऐसा अवतार-पुरुष बता सकते हैं जिसने शासनका भार बिना हिंसा आदिके निभाया हो ? मैं तो समझता हूँ कि सब अवतार-पुरुष

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