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20 स्य समहाविटपः,स चासौ वृक्षन आश्रिताना परमोपकारस्त्यसायाद धर्मस्तस्य स्कन्धभूत यत्तत्तथोक्तम् , अय मार:-पथा स्कन्धोरक्षनाखाऽऽधारभूतस्तथैवनाम पर्य धर्मशाखाऽऽधारभूतम् । तथा- महानगरपागारकबाडफलिहभूय ' महानगरमाकारकपाटपरिधभूतम्-महानगरमित्र महानगर विविधमुखहेतु साधाद् धर्मः, तस्य रक्षकत्वात् माकाररूप, कपाटरूप पग्धिभूतम् = अर्गगरूपम् , यत्तत्तथो क्तम् तथा-' रज्जुपिणदोन्बइदकेक' रज्जुपिनद्धय इन्द्रमतुः यथा-रज्जुबदर न्द्रघजो महोत्सवे सोपरि वर्तमानः परमशोभा जनयति, तथैवेद सर्ववतश्रेष्ठ ब्रह्मचर्यम् । तथा-' विसुद्धणेगगुणसपिगद्ध = विशुद्धानेकगुणसपिनद्ध विशुदा येऽ नेकगुणास्तैः सपिनद्ध सग्रथितमिदं ब्रह्मचर्यमस्ति । भू०१॥ । का परम उपकारी होने से धर्म का यह स्कध जैसा है। अर्थात् जिस प्रकार स्कध वृक्ष की शाखाओ का आधारभूत रोता है उसी प्रकार यह ब्रह्मचर्य भी धर्म की शाखाओं का आधारभूत है। तथा (महानगरपागारकवाडफलिहभूय) महानगर के समान विविध मुखो का हेतुभूत होने के कारण धर्मरूप नगर का यह रक्षक होने से प्राकार जैसा, कपाट जैसा और अर्गला जैसो है। तथा (रज्जुपिणद्वोव्वइदकेऊ ) जिस प्रकार रन्जु बद्ध इन्द्रध्वज महोत्सव में सर्वोपरि वर्तमान' होता हुआ परम शोभा को विस्तारता है उसी तरह यह ब्रह्मचर्यत्रत भी सर्वव्रतों में श्रेष्ठ है और परम शोभा का जनक होता है। तथा (विसुद्धणेगगुणसपिण) विशुद्ध अनेक गुणो से यह ब्रह्मचर्य अच्छी रीति से ( सपिणद्ध ) ग्रथित-युक्त है। તે ધમના ક ધ જેવુ છે એટલે કે જેમ થડ વૃક્ષની શાખાઓને માટે આધારરૂપ હોય છે એ જ પ્રકારે બ્રહ્મચર્ય પણ ધર્મની શાખાઓના આધાર ३५ छ तथा “ महानगर पागार कवाड फलिहभूय " भडानना समान विविध સુખનુ હેતુભૂત હેવાને કારણે ધમનગરનુ તે રક્ષક હેવાના પ્રકાર જેવું, ४ाट मने RAR१ छे तथा "रज्जुपिणद्धोव्वइदकेऊ" रेभ. २०४९ (દેરડુ) બદ્ધ ઈદ્રધ્વજ મહોત્સવમાં સર્વોપરિ દેખાતે પરમ શેભાને વિસ્તારે છે તે જ પ્રમાણે આ બ્રહ્મચર્ય વ્રત પણ સર્વતોમાં શ્રેષ્ઠ છે અને પરમ शासान डाय छ तथा 'विसुद्धणेगुगुणसपिणद्ध " विशुद्ध मने गुणाथी मा प्राययं सारी शते “ सपिणद्ध " अथित-युत छ