Book Title: Prashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Author(s): Kapurchand Jain
Publisher: Mahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali

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Page 7
________________ 45145145245345445454545454545454545 सम्पादकीय FIE ELSLSLS, - - - - SHRA SASSIFYFISH बालब्रह्मचारी परमयोगी प्रशान्तमूर्ति १०८ श्री आचार्य शान्तिसागर जी FT प, महाराज (छाणी) ने अपने कर्म-मल-प्रक्षालनार्थ जिस मुनिपद को धारण LE किया था उसका इतिहास भक्त से भगवान बनने की कथा है। अनन्तानन्त - काल से जीव इसी मुनिपद को धारण करते हुए मुक्ति प्राप्त करते आ रहे न हैं। आद्य तीर्थङ्करों तक ने इसी दशा से मुक्ति प्राप्त की है। दैगम्बरी दीक्षा के विना मुक्ति सम्भव नहीं है। प्राचीन भारतीय साहित्य/संस्कृति में दिगम्बर मुनियों की सत्ता के प्रमाण भरे पड़े हैं। समग्र जैन साहित्य तो दिगम्बरत्व के गुणगान से भरा हुआ है - ही वैदिक ग्रन्थों मे भी दिगम्बरत्व के उल्लेख मिलते हैं। वर्तमान चौबीसी में - ऋषभदेव प्रथम व महावीर अन्तिम तीर्थकर हुए। अतः साहित्यग्रन्थों में अधिकतः इन्हीं का उल्लेख हआ है। नेमिनाथ, पार्श्वनाथ व महावीर ऐतिहासिक महापुरुष भी हैं। अतः इनका क्रमबद्ध व प्रामाणिक इतिहास उपलब्ध है। ऋग्वेद उपलब्ध भारतीय साहित्य में प्राचीनतम ग्रन्थ माना गाया है। इसमें - अनेक स्थानो पर ऋषभदेव का उल्लेख हुआ है। उन्हे पूर्व यायावर कहा गया है। केशीसूक्त में वातरशना (कायु जिनकी मेखला है) मुनियों का वर्णन आया TE है, जो दिगम्बर मुनियों से पूर्णतः साम्य रखता है। यजुर्वेद और अथर्ववेद में - वात्य और महाव्रात्यों का उल्लेख है जिनमें महाव्रात्य दि० साधु के अनुरूप है। भारतीय साहित्य में दिगम्बर मुनियों के लिए अकच्छ, अकिञ्चन, अचेलकर, अतिथि, अनगारी, अपरिग्रही, ऋषि, गणी, गुरु, तपस्वी, दिगम्बर, दिग्वास, नग्न, निश्चेक्त, निर्ग्रन्थ, निरागार, पाणिपात्र, महायती, मुनि, यति, योगी, वातवसन, वातरशना, विवसन, संयमी (संयत), स्थविर, साधु, साहु, LF सन्यस्त, श्रमण, सपणक आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है। TE. श्रीमद् भागवत के पंचम स्कन्ध में ऋषभदेव व उनके पुत्र भरत और अन्य १०० पुत्रों का विस्तार से वर्णन है। नाभिराजा और मरुदेवी के पुत्र ऋषभदेव हए जो परमहंस दिगम्बर धर्म के आदि प्रवर्तक थे। यहाँ ऋषभदेव TE के भ्रमण का विस्तार से वर्णन है। हठयोग-प्रदीपिका, सन्यासोपनिषद्, H Devan A प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ ___VII HTHHHHHHHHHHHHHH

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