Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 419
________________ 386 : प्राकृत व्याकरण कयग्गहो कयणं कयण्णू कयन्धो कयम्बो कयरो कयलं कयली करेमि करेसु काहिइ काही किज्जइ करिअ काऊण काउआणं कया करणिज्जं करणीअं पडिकरइ पु. (कचग्रहः) केश-ग्रहण; बाल-ग्रहण; १-११७ ।। कवड्डो १८०। कवालं नं (कदनम्) मार डालना; हिंसा; पाप; मर्दन; आकुलता; १-२१७। कविलं पुं. वि (कृतज्ञः) उपकार को मानने वाला १-५६। पुं. (कबन्धः) रूंड; मस्तक हीन शरीर; धड़; कव्व-कव्वं १-२३९। कवइत्तो पु. (कदम्बः) वृक्ष-विशेष; कदम का गांछ; कस १-२२२॥ वि (कतरः) दो में से कौन ? १-२०९। न (कदलम्) कदली-फल; केला; १-१६७।। कसण स्त्री. (कदली) केला का गाछ; १-१६७, २२०।। कसाओ कर क्रिया (कृ) करना। सक (करोमि) मैं करता हूँ; १-२९; २--१९०। कसिण सक. (करोषि) तू करता है; २-२०१। सक (करिष्यति) वह करेगा; १-५। कसिणो सक. (करिष्यति) वह करेगा; १-५/ सक. (क्रियते) किया जाता है; १-९७/ कह संबं (कृत्वा ) करके; १-२७।। संबं (कृत्वा) करके; १-२७, २-१४६। कहं काउआण स. (कृत्वा) करके; १-२७। कहमवि अ. (कदा) कब; किस समय में; २-२०४। कहावणो वि (करणीयम्) करनी चाहिये; करने योग्य कहि १-२४:२-२०९। काउँओ वि (करणीयम्) करने योग्य; १-२४८॥ कामिणीण सक (प्रति करोति) वह प्रतिकूल करता है; कायमणी १-२०६। कालओ कररूहो पु.न. (कररूहम्) नख; १-३४। कालायसं स्त्री (कदली) पताका; हरिण की एक जाति, हाथी का एक आभरण; १-२२०।। कालो स्त्री. (देशज) (?) श्मशान; मसाण; २-१७४। कासइ पुं. (करीषः) जलाने के लिए सुखाया हुआ गोबर; कासओ कंडा;१-१०१। पं (करीषः) जलाने के लिए सुखाया हुआ गोबर; कासओ। कंडा; १-१०१। कासा स्त्री. (करेणूः) हस्तिनी; हथिनी; २-११६ । काहलो पुं. (कालकः) कालकाचार्य; १-६७। काहावणो स्त्री दे. (शालि गोपी) चाँवल की रक्षा करने काहीअ वाली २-२१७। काहिइ पुं. (कदम्बः) वृक्ष-विशेष; कदम का गाछ; १-३०, किंसुअं २२२। किआ पुं. (कलापः) समूह; जत्था; १-२३१॥ किई वि (करूणः) दीन, दया-जनक; करूणा का किच्चा पात्र १-२५४। न (कल्यम्) कल; गया हुआ अथवा आगामी किच्ची दिन; २-१८६। न (कल्हारम्) सफेद कमल; २-७६। किच्छं वि (कदर्थित) पीड़ित, हैरान किया हुआ; १-२२४; किज्जइ २-२९। पुं (कपर्दः) बड़ी कौड़ी; वराटिका; २-३६ । न (कपालम्) खोपड़ी; घट-कर्पर; हड्डी का भिक्षा-पात्र; १-२३१॥ न वि (कपिलम्), पीला रंग जैसे वर्ण वाला: १-२३१॥ न (काव्यम्) कविता, कवित्व, काव्य; २-७९। पु. (काव्यवान्) काव्य वाला; २-१५९। विअसन्ति अक (विकसन्ति) खिलते हैं; २-२०९। विअसिवि (वकसितम्) खिला हुआ; १-९१, २-२५। कसणो पुं वि (कृष्ण:) काला; १-२३६; २-७५ ११०। वि (कषायः) कषैला स्वाद वाला; कषाय रंग वाला; खुशबुदार; १-२६०। वि (कृत्स्नः ) सकल, सब सम्पूर्ण, (कृष्ण:काला) २-७५, १०४। वि (कृष्णः अथवा कृत्स्नः) काला अथवा पूर्ण; २-८९,१०४,११० अ. (कथम्) कैसे? किस तरह ? १-२९, २-१६१ । १९९; २०४ २०८। अ (कथम्) कैसे ? किस तरह ? १-२९, ४१ । अ (कथमपि) किसी भी प्रकार; १-४१। पुं (कार्षापण:) सिक्का विशेष; २-७१, ९३। अ. (कुत्र) कहाँ पर? २-१६१॥ पुं. (कामुकः) महादेव; शिव; १-१७८ । स्त्री (कामिनीनाम्) सुन्दर स्त्रियों के; २-१८४। पुं. (काचमणिः) काँच-रत्न विशेष; १-१८०। पुं. (कालकः) कालकाचार्य; १-६७॥ कालासं न (कालायसम्) लोहे की एक जाति १-२६९। पुं. (कालः) समय; वख्त; १-१७७) अ (कस्यचित्) कोई; १-४३। पुं. (कर्षक) किसाल; १-४३। न (कास्यम्) धातु-विशेष; काँसी; वाद्य-विशेष। वि पु. (कश्यपः) दारू पीने वाला, १-४३। स्त्री, वि (कृशा) दुर्बल स्त्री; १-१२७। वि पु. (कातरः) कायर; डरपोक; १-२१४। पु. (कार्षापणः) सिक्का विशेष; २--७१। सक (कार्षीद्) करो; २-१९१। सक. (करिष्यति) वह करेगा; १-५। न ( किंशुकम्) ढाक; वृक्ष-विशेष; १-२९,८६। स्त्री. (क्रिया) चारित्र; २-१०४।। स्त्री (कृतिः) कृतिः क्रिया; विधान; १-१२८। स्त्री. (कृत्या) क्रिया, काम, कर्म; महामारी का रोग विशेष; १-१२८। स्त्री. (कृत्तिः) कृतिका नक्षत्र; मृग आदि का चमड़ा, भोज-पत्र २-१२,८९॥ न. (कृच्छ्रम्) दुःख, कष्ट; १-१२८। क्रिया (क्रियते) किया जाता है १-९७। कररूह करली करसी करिसा कासं करीसो करेणू कलओ कलमगोवी कलम्बो कलावो कलुणो कल्लं कल्हारम् कवट्टिओ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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