Book Title: Prakrit Vyakaran Praveshika
Author(s): Satyaranjan Banerjee
Publisher: Jain Bhavan

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Page 42
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्रिया ४१ विभक्ति प्रथमा द्वितीया सर्व-सव्व नपंसकलिंग एकवचन वहवचन सव्वं सव्वाणि, सव्वाइं, सव्वाइँ सव्वं सव्वाणि, सव्वाइ, सव्वाइँ शेष रूप पलिंग "सव्व' शब्द की भांति ही चलते हैं । क्रिया प्राकृत में क्रिया के विषय में कछ विशेषताएँ हैं । जैसे १. धात २. पुरुष ३. वचन ४. वाच्य (परस्मैपद और आत्मनेपद) ५. क्रिया के भाव ६. काल (वर्तमान, अतीत और भविष्यत्) ७. अ-आगम ८. अभ्यास (द्वित्व) ९. विकरण १०. क्रिया की भूमि ११. क्रिया-विभक्ति (तिङ विभक्ति) १२. क्रिया का रूप । इनके अतिरिक्त भी १३. तमन् प्रत्यय है, १४. शतृ और शानच् प्रत्ययान्त शब्द और १५. असमापिका क्रिया भी है। इसके अलावा क्रिया में और भी विषय है जिसको हम अलग ढंग से बनाते हैं । वह है १६. कर्मवाच्य, १७. णिजन्त क्रिया, १८. नाम-धात, १९. सन्नन्त धात और २०. यडन्त धात । कल मिलाकर के क्रिया में केवल इसी विषय में हमलोग ध्यान देते हैं। किन्त उपर्यक्त जो विषय हमने वतलाए हैं वे सभी प्राकृत में नहीं होते हैं । प्राकृत मे उपर्यक्त विषय इतने सरल हो गए हैं कि एक विषय का भाव दूसरे विषय के द्वारा भी प्रकट हो सकता है । हम इन विषयों पर क्रमश: प्रकाश डालेंगे १. धात-धात साधारणतया एक स्वर की होती है । जैसे कर, हस, मन् इत्यादि । किन्तु प्राकृत में अन्तिम हलन्त वर्ण नहीं होता है, इसलिए धात के साथ स्वर (अ) योग करना चाहिए । इसलिए कर धात को हमलोग कर रूप से पढ़ते हैं और इसी के साथ क्रिया विभक्ति का योग होता है । अर्थात् कर + इ = प्राकृत में करइ । प्राकृत में कोई धात द्वि-स्वर यक्त भी हो सकती है । जैसे पेक्ख इसका रूप पेक्खइ होता है । इस तरह देखइ, पासइ, हसइ इत्यादि । For Private and Personal Use Only

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