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ममत्व
दुक्खपरीकेसकर, छिंद ममत्तं सरीराओ॥ शरीर के प्रति होने वाले दुःखद व क्लेशकर ममत्व का छेदन करो।
-~~-मरण समाधि (४०२)
मांसाहार
मांसासणेण वड्ढइ, दप्पो दप्पेण मजमहिलसइ ।
जूयं पि रमइ तो तं, पि वणिण्वए पाउणइ दोसे ॥ मांसाहार से दर्प बढ़ता है। दर्प से मानव में मद्यपान की अभिलाषा पैदा होती है और तब वह जुआ भी खेलता है। इस प्रकार एक मांसाहार से ही मानव उक्त वर्णित सर्व दोषों को प्राप्त कर लेता है।
-वसुनन्दि-श्रावकाचार (८६)
ण पउंजए मंसं। मांस का सेवन कदापि नहीं करना चाहिये।
-वसुनन्दि-श्रावकाचार (८७)
माया मायी विउव्वइ नो अमायी विउव्वइ । जिसके अन्तर में माया का अंश है, वही नाना रूपों का प्रदर्शन करता हैं, अमायी नहीं करता।
-भगवती-सूत्र ( १३/६ ) सञ्चाण सहस्साण वि, माया एक्कावि णासेदि । . एक माया-हजारों सत्यों को नष्ट कर डालती है ।
-भगवती-आराधना ( १/३/८/४) २०६ ।
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