Book Title: Prajnaparamitas 01
Author(s): Gieuseppe Tucci
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra
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ऊनत्रिंशत्तम परिवर्तः ।
त्वेन नात्यायतवचनता ॥ ४७ ॥ प्रतिबिम्बवत्विदितसर्वस्लोकत्वेन बिम्बप्रतिबिम्बौष्ठता ॥ ४८ ॥ मृदुवचनविनयत्वेन मृदुहिता ॥ ४९ ॥ प्रभूतगुणोपपन्नत्वेन तनुजिह्वता ॥५०॥ रक्तबालजनदुरवगाहधर्मविनयत्वेन रक्तजिह्वता ॥ ५१ ॥ सर्वत्राशापगतत्वेन मेघगर्जितघोषता ॥ ५२ ॥ मधुराद्यालापत्वेन मधुरचारुमञ्जुस्वरता ॥ ५३ ॥ निवृत्तभवसंयोजनत्वेन वृत्तदंष्ट्रता ॥५४॥ दुर्दान्तजनदमकत्वेन तौक्ष्णदंष्ट्रता ॥ ५५ ॥ परमशुक्लधर्मविनयत्वेन शुक्लदंष्ट्रता ॥ ५६ ॥ समभूमिप्रतिष्ठितत्वेन समदंष्ट्रता ॥ ५७ ॥ सम्यगनुपूर्वाभिसमयप्रकाशकत्वेनानुपूर्वदंष्ट्रता ॥ ५८ ॥ प्रज्ञाप्रकर्षस्थापकत्वेन तुङ्गनामता ॥ ५८ ॥ शुचिजनसम्पन्नत्वेन शुचिनासता ॥ ६० ॥ परमोदारधर्मत्वेन विशालनयनता ॥ ६१ ॥ समुपचितसत्त्वराशित्वेन चितपक्ष्मता ॥ ६२ ॥ सर्वयुवति - जनाभिनन्दित्वेन सितासितकमलदलनयनता ॥ ६३ ॥ नित्यमायतिदर्शित्वेनायतभ्रूकता ॥ ६४ ॥ श्लक्ष्णधर्मविनयकुशलत्वेन श्लक्ष्णभ्रूकता ॥ ६५ ॥ कुशल स्निग्धसन्तानत्वेन सुस्निग्धभ्रूकता ॥ ६६ ॥ समन्त दोषदर्शित्वेन समरोमभ्रूकता ॥ ६७ ॥ परमपौडानिवर्तकत्वेन पौनायतभुजता ॥ ६८ ॥ विजितरागादिसमरत्वेन समकर्णता ॥ ६८ ॥ सर्वसत्त्वानुपहतसन्तानत्वेनानुपहतकर्णेन्द्रियता ॥ ७० ॥ सर्वदृष्टिकृतान्यथाविपरिणामत्वेनापरिग्लानललाटता ॥ ७१ ॥ सर्ववादिप्रमथनत्वेन पृथुललाटता ॥ ७२ ॥ परिपूर्णोत्तमप्रणिधानत्वेन पूर्णोत्तमाङ्गता ॥ ७३ ॥ विषयरतिव्यावर्तकत्वेन भ्रमरसदृशकेशता ॥ ७४ ॥ प्रहौणदर्शनभावनाप्रहातव्यानुशयत्वेन चितकेशता ॥७५॥ श्लक्ष्णबुद्धिपरिज्ञात
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