Book Title: Prachin Stavanavli 23 Parshwanath
Author(s): Hasmukhbhai Chudgar
Publisher: Hasmukhbhai Chudgar

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Page 47
________________ १७५ १७६ २८७-२८८ उन भावी महापुरुषों में कैसे गुण होते हैं १६९ २८९ कैसी भावना वाले गणधर होते हैं १७० २९० कैसी भावना वाले मुंडकेवली या मूककेवली होते हैं १७० २९१-२९३ जीवों को विचित्र भावनायें होने में हेतु १७१ २९४ मोक्ष के हेतु के बारे में अन्य पंडितों के अभिप्राय १७३ २९५-२९६ इस बारे में विशेष मतभेद और उनका समाधान १७४ २९७-२९८ अन्य मतवालों का ईश्वर का अनुग्रह किस प्रकार मानने से सत्य है २९९-३०० अन्य कौन-कौन से अनुग्रह होते हैं ३०१-३०२ अन्य मतवादी इस मोक्षमार्ग में हेतुरूप योग को किस प्रकार स्वीकार करते हैं १७७ ३०३-३०५ परमतवादियों द्वारा कल्पित अयोग्य तत्त्व का खंडन १७८ ३०६-३०७ कर्म मूर्त है या अमूर्त यह बताते हुए परदर्शनकारों को उत्तर १८० ३०८ भगवान कालातीत के मत का प्रतिपादन १८१ ३०९ सद्युक्तिवाले न्याय के वचन ग्रहण करने चाहिये ३१०-३११ कालातीत के मत के साथ विशेषण का भेद १८२ ३१२-३१३ तीर्थंकर का स्वरूप १८३ ३१४-३१५ नियतिवाद पदार्थ के सहज स्वभाव के अनुसार है ३१६ छद्मस्थ जीव द्वारा अतींद्रिय वस्तु का निश्चय नहीं हो सकता तो उसके उपदेश की योग्यता किस प्रकार हो ३१७-३१८ ___ कदाग्रह का त्याग करना चाहिये १८६ ३१९-३२० दैव और पुरुषकार का स्वरूप ३२१-३२३ दैव और पुरुषकार के संबंध में व्यवहार नय का मत १८८ ३२४-३२६ दैव और पुरुषकार में अन्योन्याश्रय भाव रहा हुआ है १९० ___३२७ इस बारे में विशेषता क्या है ३२८-३३१ कर्म और पुरुषार्थ का घात्य-घातक भाव १९१ ३३२-३३४ नियत भाव वाली योग्यता को काष्ट और प्रतिमा के दृष्टांत से समझाया है १९४ १८१ १८४ १८५ १८७ ३७

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