Book Title: Prachin Stavanavali
Author(s): Hasmukh Chudgar
Publisher: Hasmukh Chudgar

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Page 368
________________ सकल समता सुरलतानो, तुंही - श्री पूज्य ज्ञानविमलजी महाराज 14 सकल समता सुरलतानो, तुंही अनोपम कंद रे; तुंही कृपारस कनककुंभो, तुंही जिणंद मुणिंद रे...(१) प्रभु तुंही तुंही तुंही तुंही युही धरता ध्यान रे; तुज स्वरुपी जे थया तेणे, लयुं ताहरुं तान रे. प्रभु.२ तुंही अलगो भव थकी पण, भविक ताहरे नाम रे; ____पार भवनो तेह पामे, एहि अचरीज ठाम रे. प्रभु.३ जन्म पावन आज मारो, नीरखीओ तुज नूर रे; भवोभव अनुमोदना जे, हुओ आप हजुर रे. प्रभु.४ एह माहरो अखय आत्तम, असंख्यात प्रदेश रे; ताहरा गुण छे अनंता, किम करुं तास निवेश रे ? प्रभु.५ एक एक प्रदेश ताहरे, गुण अनंतनो वास रे; एम कही तुंज सहज मीलत, होय ज्ञानप्रकाश रे. प्रभु.६ ध्यान ध्याता ध्येय, एकीभाव होये एम रे; एम करतां सेव्य सेवक-भाव होये क्षेम रे.प्रभु.७ एक सेवा ताहरी जो, होय अचल स्वभाव रे; ज्ञानविमल सूरींद प्रभुता, होय सुजस जमाव रे. प्रभु.८ 3१२

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