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[३८] पांडुक बन सिंहासन ऊपर, रतन माल मंडप लटका । सुरगण ढालत क्षीरोदधि के, सहस अठोत्तर भर मटका ॥२॥ तांडव नृत्य कियो सुरराई, सकल अंग ,मटका मटका । । सुर किन्नर जहां बीन बजा, कर कंकण झटका झटका ॥३॥ कुगुरु कुदेव कुलिंगी दुर्जन, देखनकू भी नहिं फटका! . धर्मचोर पापी दुखदाई, देश त्यांग ह्वां सैं सटका ॥४॥ पुन्य भंडार भरे भविजीवन, सरन लह्यो प्रभु पद,पटका। सरधावंत भये मिथ्याती, पोप भार सिर से पटका ॥ ५॥ आज दिवस कूदास नैन सुख, फिरताथा भटका मटका। दीनबंधु अब वही दिवस है, देहू पुन्य हमरे चटका ॥ ६॥
८०- ठुमरी जंगला। लिया आज प्रभुजी ने जनम लखी चलो अवधपुरी गुण गावन फू ॥ टेक ॥ तुम सुनोरी सुहागन भाग भरी, चलो मोतियन चौक पुगवन को ॥१॥ सुवरण कलश धरो शिर ऊपर जल लावे प्रभु न्हावन को ॥२॥ भर भर थाल दरव के लेकर, चालोरी अर्घ चढ़ावन को ॥३॥ नयनानंद कह सुनि सजनी, फेर न। अवसर आवन को ॥ ४ ॥
' ८१-- रागभैरवी। तुम हमैं उतारो पार अजित जिन भवधि बांह पकर के जी ॥टेक ॥ हमक अष्ट कर्म वैरी ने लीने बांध जकर के जी। हम न चलेंगे उनके संग, रहें तेरे द्वार पसर के जी ॥ ३ ॥ अष्ट दरब ले पूजन आये, लेंगे दान झगर के जी । भावे दया निमित शिव