Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 32
________________ महाराजा सम्प्रति के शिलालेख इस कथन में तीन राज्य काल ( ६३अ) का सूचन हुआ है, एक चन्द्रगुप्त दूसरा अशोक और तीसरा प्रियदर्शिन । इससे सिद्ध होता है कि अशोक और प्रियदर्शिन दो भिन्न-भिन्न मनुष्य हैं। ऐसे शिलालेख रूप प्रमाण से अधिक प्रामाणिक सबूत क्या हो सकता है ? इस पर भी प्रो० जैकोबी सम्प्रति६४ को काल्पनिक व्यक्ति कहने को प्रस्तुत हुए हैं। (३) उक्त सुदर्शन के लेख के बारे में बादशाहत के बारे में लिखते हुए प्रो० पिटर्सन लिखते हैं कि "उस राज्यवंशीय पुरुष को जन्मकाल से लेकर उत्तरोत्तर समृद्धि ही वरण करती रही" विशेषण रूप से व्यवहृत ये शब्द जैन सम्राट सम्प्रति उर्फ प्रियदर्शिन के ही लिए हैं, क्या यह नहीं कहा जा सकता कि जिसने मात्र ६ या १० मास के बालकपन में ही गद्दी प्राप्त की थी? (६३) मगधपति चन्द्रगुप्त के राज्य का विस्तार कहाँ तक था इस से जाना सकता है । (प्रश्नः-कौटिल्य अर्थात् चाणक्य, जो चन्द्रगुप्त के मुख्य मन्त्री पद पर था, उसका नाम बिष्णुगुप्त था, उसका इस व्यक्ति से क्या कोई सम्बन्ध हो सकता है ? कारण कि ऐसा बड़ा तालाब बनवाना उसके जैसे साधन वाले पुरुष का ही तो काम नहीं रहा होगा ? किन्तु मूल लिपि की जांच करते हुए तो वैश्यगुप्त ही लिखा हुआ स्पष्ट देख पड़ता है। या अब तक चाणक्य का जो विष्णुगुप्त नाम जाना गया है वैश्यगुप्त ही तो नहीं है। हो सकता है दोनों एक ही व्यक्ति हों या वैश्यगुप्त दूसरा ही कोई हो।) (६३) इसके लिए लेख के अन्त का परिशिष्ट देखिए । (६४) सम्प्रति ही प्रियदर्शिन है इसके लिए देखिए प्रमाण ३, ५, -- १५, २५, २७, २८, और ३० ।

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