Book Title: Pati Patni Ka Divya Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार 'तुम तो भोले हो। इतना सारा कोई देता है कहीं?' इस पर मैं समझ गया कि हम जीत गए! फिर मैंने कहा, 'तब तुम्हें जितने देने हो उतने देना, चारों लड़कियाँ हमारी बेटियाँ हैं।' तब वे खुश हो गईं। फिर 'देव जैसे हैं' ऐसा कहती हैं! देखो, पट्टी लगा दी (बाजी संभाल ली) न! मैं जानता था कि मैं पाँच सौ कहूँगा तो वे दे दें ऐसी नहीं हैं ! इसलिए हम उन्हें ही अधिकार सौंप दें न! मैं स्वभाव पहचानता था। मैं पाँच सौ = तो वे तीन सौ दे आएँ। इसलिए बोलिए, सत्ता सौंपने में मुझे क्या हर्ज होगा? भोजन के समय किट-किट प्रश्नकर्ता : कढ़ी खारी हो तो खारी कहना ही पड़ेगा न? दादाश्री : फिर जीवन खारा हो जाएगा न! तुम 'खारी' कहकर दूसरे का अपमान करते हो। उसे फैमिलि (परिवार) नहीं कहते। प्रश्नकर्ता : अपनों को ही कहते हैं न, पराये को थोड़े ही कहते घर में किस लिए यह दखल देते हो? मनुष्य की भूल नहीं होती क्या? करनेवाले से भूल होती है कि नहीं करनेवाले से? प्रश्नकर्ता : करनेवाले से। दादाश्री : तब 'कढ़ी खारी है' ऐसी भूल नहीं निकाल सकते। उस कढ़ी को अलग रखकर, दूसरा जो कुछ है वह खा लेना है हमें। पर उनकी आदत है कि ऐसी कोई गलती निकाल कर उन्हें धमकाना। यह उनकी आदत है। पर यह बहन भी कुछ कच्ची माया नहीं। यह अमरीका ऐसा करे तब रशिया वैसा करे। अर्थात् अमरीका-रशिया जैसा हो गया यह तो, कुटुम्ब में, फ़ैमिलि में। इसलिए निरंतर अन्दर कोल्डवोर (शीतयुद्ध) चलता रहता है। ऐसा नहीं, फैमिलि बना दो। मैं तुम्हें समझाऊँगा कि फ़ैमिलि बनकर कैसे रहना! यहाँ तो घर-घर क्लेश है। 'कढ़ी खारी हुई', ऐसा हम न कहें तो नहीं चलेगा? ओपिनियन (अभिप्राय) नहीं दें तो क्या उन लोगों को पता नहीं चलें या हमें कहना ही पड़े? हमारे यहाँ मेहमान आए हों न, तो मेहमानों को भी खाने नहीं दें। हम ऐसे क्यों बनें? वह खायेगी तो क्या उसे पता नहीं चलेगा या हमें ही उसे कहना पड़े? दादाश्री : तो क्या अपनों को ठेस पहुँचाना? प्रश्नकर्ता : कहें तो दूसरी बार ठीक से करेंगे इसलिए। दादाश्री : वह ठीक बनाये या नहीं बनाये वे बातें सब गप हैं। किस आधार पर होता है, यह मैं जानता हूँ। बनानेवाले के हाथ में सत्ता नहीं है और तुम्हारे कहनेवाले के हाथों में भी सत्ता नहीं है। इन सभी सत्ता का आधार क्या है? इसलिए एक अक्षर भी बोलने जैसा नहीं है। तू अब थोड़ा-बहुत समझदार हुआ कि नहीं हुआ? समझदार होगा न? पूर्णरूप से समझदार होना है। घर में वाइफ कहे, 'अरे! ऐसा पति बार-बार मिले।' मुझे आज तक केवल एक बहन ने कहा, 'दादाजी, पति मिले तो यही का यही मिले।' वर्ना ज्यादातर तो मुँह पर (अच्छा) कहती हैं, पर पीछे से इतनी गालियाँ देती हैं। 'मेरे दिल में आज भी वह घाव है', ऐसा कहनेवाली भी एक औरत मिली! बाकी स्त्री को बार-बार टोकटाक, टोकटाक नहीं करना चाहिए। 'सब्जी ठंडी क्यों हो गई? दाल का छौंक ठीक क्यों नहीं किया?' ऐसी किट-किट क्यों करते हो? बारह महीने में एकाध दिन एकाध शब्द कहा हो तो ठीक है पर यह तो रोज़ाना? 'ससुर मर्यादा में तो बह लाज में।' हमें मर्यादा में रहना चाहिए। दाल ठीक नहीं हुई हो, सब्जी ठण्डी हो गई हो, वह सब तो (अपने कर्मों के अधीन) नियमानुसार होता है। अगर बहुत ज्यादा हो जाए और किसी वक्त कहना पड़े तो धीरे से कहना कि 'यह सब्जी रोज़ गर्म होती है तब बहुत मज़ा आता है। इस प्रकार कहें तो वह इशारा समझ जाएगी।

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65