Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 05
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 467
________________ लेकिन उसको बहुत: अधिक काट-छांट की आवश्यकता है। इससे पीड़ा होती है। याद रखो, जब कभी पीड़ा हो, सदैव निरीक्षण करो... और तुम देखोगी कि यह अहंकार है जिसको पीड़ा होती है, तुम नहीं हो। अहंकार को गिरा कर, अहंकार को काट-छांट कर, एक दिन तुम, तुम उससे, बादल से बाहर निकल आओगी। और तब तुम मेरे प्रेम को और मेरी करुणा को समझोगी, इससे पहले नहीं। मुझसे लोग पूछते हैं, 'यदि हम संन्यासी नहीं हैं, तो क्या आप हमारी सहायता नही करेंगे?' मैं सहायता करने के लिए तैयार हूं किंतु तुम्हारे लिए यह सहायता ले पाना कठिन होगा। एक बार तुम संन्यासी हो जाओ, तुम मेरा भाग बन जाते हो। फिर जो कुछ भी मैं करना चाहूं कर सकता हूं और तब मैं तुम्हारी अनुमति लेने की फिकर भी नहीं करता, अब उसकी आवश्यकता न रही। एक बार तुम संन्यासी बन गए, तो तुमने मुझको सारी अनुमति दे दी है, तुमने मुझको पूरा अधिकार दे दिया है। जब तुम संन्यास लेते हो तो तुम मुझको अपना हृदय दिखा कर सहमति दे रहे हो। तुम कह रहे हो : 'अब मैं यहां हूं जो कुछ आप करना चाहें कर लें।' और निःसंदेह मुझको अनेक ऐसे भाग काटने पड़ते हैं जो गलती से तुम्हारे साथ जुड़ गए हैं। यह करीब-करीब एक शल्य-क्रिया होने जा रही है। अनेक चीजों को हटाना, निष्क्रिय करना पड़ता है। अनेक चीजों को तुम्हारे साथ जोड़ना पड़ता है। तुम्हारी ऊर्जा को नये रास्तों पर जाने के लिए व्यवस्थित करना पडता है; यह गलत दिशाओं में गति कर रही है। इसलिए यह लगभग विध्वंस करने और फिर पुन: निर्माण करने जैसा है। यह करीब-करीब एक उपद्रव होने जा रहा है। किंतु स्मरण रखो, कि नृत्य करते हुए सितारों का जन्म उपद्रव में से ही होता है, दूसरा कोई रास्ता नहीं है। अंतिम प्रश्न: पूरब में इस बात पर बल दिया जाता है कि व्यक्ति को प्रेम-संबंध में एक व्यक्ति एक ही व्यक्ति के साथ बने रहना चाहिए। पश्चिम में अब लोग एक संबंध से दूसरे संबंध में चले जाते है। आप किसके पक्ष में है? में प्रेम के पक्ष में हूं। मुझको तुम्हारे लिए यह बात स्पष्ट करने दो : प्रेम के प्रति ईमानदार रहो और साथियों की चिंता मत करो। भले ही साथी एक हो या अनेक साथी हों, प्रश्न यह नहीं है। प्रश्न यह है कि क्या तुम प्रेम के प्रति ईमानदार हो? यदि तुम किसी स्त्री या पुरुष के साथ रहते हो और उसको प्रेम नहीं करते हो,

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