Book Title: Patan Chaitya Pparipati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library

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Page 4
________________ 20290900900202902 किंचिद् वक्तव्य. सुज्ञ वाचक बंधुओ! प्राचीन गूजराती भाषानुं परिशीलन करनार साहित्यप्रेमी इतिहासगवेषी सज़नोने परम आनंद थशे के २७ नक्षबोनी मालासमान अथवा साधुओना २७ गुणो जेवी २७ ग्रंथपुष्पोनी माला' समर्पण करू पछी आजे अम्हे 'पाटण चैत्यपरिपाटी' नामर्नु २८ मुं ग्रंथपुष्प आपना कर-कमलमां सादर मूकवा शक्तिमान् थया छीए. गूजरातनी प्राचीन राजधानी अणहिल्लवाड पाटणमा रहेलां विक्रमना १७-१८मा सैकानां जिनचैत्यो-मंदिरोनी परिस्थितिनो परिचय करावनार आ 'पाटण चैत्य परिपाटिने अम्हे तेनी प्राचीन भाषामां विकृति कर्या विना प्रकाशित करवा बनतुं लक्ष्य आप्यु छे. छतां आ पुस्तकमां आपेली बे परिपाटियोमाथी वि.सं. १६४८मां पूर्णिमागच्छीय ललितप्रभसूरिए रचेली परिपाटिनी प्राचीनप्रति जेवी परिशिष्टमां मूकेली (वि. १ ग्रंथोन लिस्ट प्रथम पेजमा आप्युं छे; लायब्रेरीना परिचय माटे सं. १९६६ थी सं. १९७५ सुधीनो रिपोर्ट वांची.

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