Book Title: Parul Prasun
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 14
________________ फिर सेताज़ा कर लूँ, जिससे मेरी टूटी हुई आशाएँ लौट आएँ मेरे अरमान जो बाँधे रखे थे टूटते हुए दिल को फिर दिल को तोड़ न जाएँ समय के बढ़ते प्रवाह में बचपन की यादें, जवानी के ये बिछड़ते पल, खोना नहीं चाहती - वे फिर वापिस आए न आए! ज़िदगी के इस बढ़ते वेग में समय ! तू रुक जा। भागता हुआ समय, कहां ठहरता हे, रुकता है वह ? अतीत शैशव की स्मृतियाँ और वर्तमान के भाग रहे बिछड़ते क्षण सभी को पकड़कर रखना है । थोड़ी देर तो रुक जा, ऐ समय! ५. पुनः तनहा न जाने कब से तनहा थे, तुम आए ज़िंदगी में, खुशियों से भरे पल लिए, कई सुंदर सपने लिए, तो समझे, आख़िर तनहाईयों का साथ छूटा अब न पड़ेगी ग़म की छाया जीवन में नहीं निराशा आएगी फिर से जीवन में । तुम चले गए हो अब फिर से तनहा हो गए हैं ... । | १२ १२ पारुल-प्रसून

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