Book Title: Parshwanath ka Chaturyam Dharm
Author(s): Dharmanand Kosambi, Shripad Joshi
Publisher: Dharmanand Smarak Trust

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Page 113
________________ सोवियत संघको पूँजीपतियोंसे भय ८९ rmmmmmmmmmmmmmmmm भारतीय सत्याग्रहियोंकी तरह जेलमें या निर्वासित होकर साइबेरियामें जाते । अर्थात् स्वयं कष्ट सहन करके वे लोगोंको शिक्षा देते । जारकी हार होनेपर उन्हें मौका मिल गया और उससे लेनिनने फायदा उठाया। इस तरहका फ़ायदा हमारे साम्यवादी और समाजवादी पहले या दूसरे महायुद्धके बाद नहीं उठा सके। क्योंकि अमेरिका या स्वयं रूसकी मददसे अंग्रेजोंकी जीत हुई थी। अब इन दोनोंको अगले महायुद्धकी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। ऐसी मार्गप्रतीक्षा करनेके बजाय क्या यह उचित नहीं होगा कि सत्य एवं अहिंसाके उपायोंसे ही श्रमजीवी लोगोंको जाग्रत किया जाय ? सत्य तो उनके पक्षमें है ही, अब यदि वे शुद्ध भावनासे अहिंसाको अपनाएँगे तो हिन्दुस्तानका ही नहीं बल्कि सारे संसारका हित करनेमें समर्थ होंगे। सोवियत संघको पूँजीपतियोंसे भय सोवियत नेताओंको यह भय लगा हुआ है कि अमेरिकन और अंग्रेज पूँजीपति कोई न कोई बहाना बनाकर रूसपर हमला करना चाहते हैं और हम नहीं कह सकते कि यह भय बेबुनियाद है । इधर चीनमें चांग काइ शेकको आगे करके अमेरिकन लोग दाँव चला रहे हैं, तो हिन्दुस्तानमें मुस्लिम लीगका ठेंगुर कांग्रेसके गलेमें बाँधकर हिन्दुस्तानको सोवियतके खिलाफ़ खड़ा करनेकी चाल अंग्रेज चल रहे हैं, ऐसी शंका रूसी कूटनीतिज्ञोंको आ रही है । हिन्दुस्तानकी ओरसे सोवियत संघको निश्चित बनानेका प्रधान उपाय यह है कि अपरिग्रही एवं अस्तेयी समाजके निर्माणके ध्येयको कांग्रेस पूर्णतया अपनाए। श्री जवाहरलाल नेहरू आर अन्य समाजवादी भाई कांग्रेसमें ही हैं; पर वे कट्टर देशाभिमानी हैं । इटली और जर्मनीमें यह अनुभव आया है कि देशाभिमान और सोशालिज्मके संयोगसे फासिज़्म पैदा होता है ।

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