Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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अष्टमाध्यायस्य प्रथमः पादः प्रतिषेध होता है। अत: 'भोक्ष्यसे' पद में 'स्यतासी ललुटो:' (३।१।३३) से स्य' विकरण-प्रत्यय आयुदात्तश्च' (३।१।३) से उदात्त होता है। शेष स्वराङ्कन पूर्ववत् है। ऐसे ही-त्वं नह अध्येष्यसे ।
नह' शब्द चादिगण में पठित होने से चादयोऽसत्त्वे (१।४।५८) से निपातसंज्ञक है। सर्वानुदात्तप्रतिषेधः
(१५) सत्यं प्रश्ने।३२। प०वि०-सत्यम् अव्ययपदम्, प्रश्ने ७।१।
अनु०-पदस्य, पदात्, अनुदात्तम्, सर्वम्, अपादादौ, तिङ्, न, निपातै:, युक्तमिति चानुवर्तते।
___ अन्वयः-अपादादौ पदात् प्रश्ने सत्यं निपातेन युक्तं तिङ् पदं सर्वमनुदात्तं न।
__अर्थ:-अपादादौ वर्तमानं पदात् परं प्रश्नेऽर्थे सत्यमित्यनेन निपातेन युक्तं तिङन्तं पदं सर्वमनुदात्तं न भवति ।
उदा०-त्वं सत्यं भोक्ष्यसे ? त्वं सत्यमध्येष्यसे ? प्रश्ने इति किम् ? सत्यं वक्ष्यामि नानृतम् ।
आर्यभाषा: अर्थ-(अपादादौ) ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान (पदात्) पद से परवर्ती (प्रश्ने) प्रश्न अर्थ में (सत्यम्) सत्यम् इस (निपातेन) निपात-संज्ञक शब्द से (युक्तम्) संयुक्त (तिङ्) तिडन्त (पदम्) पद (सर्वमनुदात्तम्) सर्वानुदात्त (न) नहीं होता है।
उदा०-त्वं सत्यं भोक्ष्यसे ? क्या तू भोजन करेगा? त्वं सत्यमध्येष्यसे ? क्या तू अध्ययन करेगा ? प्रश्न अर्थ से अन्यत्र-सत्यं वक्ष्यामि नानृतम् । मैं सत्य कहूंगा, झूठ नहीं।
सिद्धि-सत्यं भोक्ष्यसे। यहां ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान, 'सत्यम्' इस पद से परवर्ती तथा इससे संयुक्त तिडन्त 'भोक्ष्यसे' पद को इस सूत्र से सर्वानुदात्त का प्रतिषेध होता है। अत: 'भोक्ष्यसे' पद पूर्ववत् मध्योदात्त होता है। ऐसे ही-त्वं सत्यमध्येध्यसे।
'सत्यम्' शब्द चादिगण में पठित होने से निपात-संज्ञक है। सर्वानुदात्तप्रतिषेधः
(१६) अङ्गाप्रातिलोम्ये ।३३। प०वि०-अङ्ग अव्ययपदम्, अप्रातिलोम्ये ७१।
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