Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 299
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वार पिकृते श्रीचन्द्र-टरूवं, चय वेयहयाण नियगजोगाणं । जम्हा नपुंसउदए, वेउश्चियमीसगो नत्थि ॥१९५।। चत्तारि अविरए चय, थीउदए विउव्वि- बन्धहेतु शमीसकम्मइया । इत्थिनपुंसगउदए, ओरालियमीसगो नत्थि ॥ १९६ ॥ दो रूवाणि पमत्ते, चयाहि एगं तु अप्पमत्तम्मि । जं पश्चसंग्रहे इत्थिवेयउदए, आहारगीसगा नत्थि ॥१९७ ।। सब्बगुणठाणगेसुं, विसेसहेऊण एत्तिया संखा | छायाललक्ख बासीई, सहस्सा बन्धद्वारे सय सत्तसयरी य ॥ १९८ ॥ सोलसठारस हेऊ, जहन्न उक्कोसया असन्नीण । चोइसठारसऽपज्जस्स समिणो सनिगुणगाहओ ॥२९५॥ DI|| १९९ ।। मिच्छत्तं एग चिय, छक्कायवहो तिजोगसनिम्मि | इंदियसंखा सुगमा, असन्निविगलेसु दो जोगा ॥ २००॥ एवं चार अपज्जाणं, बायरसुहुमाण पज्जयाण पुणो । तिण्णेक्ककायजोगा, सण्णिअपज्जे गुणा तिनि ॥ २०१॥ उरलेण तिनि छण्हं, सरीरपज्जत्तयाण मिच्छाणं । सविउब्वेण सनिस्स, सम्ममिच्छस्स वा पंच ॥ २०२ ॥ सोलस मिच्छनिमित्ता, बज्झहि पणतीस अविरईए य । सेसा उ कसाएहिं, जोगेहि य सायवेयणियं ।। २०३ ॥ तित्थयराहाराणं, बंधे सम्मत्तसंजमा हेऊ । पयडी-18 पएसबंधा, जोगेहिं कसायओ इयरे ।। २०४ ॥ खुप्पिवासुण्हसीयाणि, सेज्जा रोगो वहो मलो । तणफासो चरीया य, दंसेक्कार सजोगिसु ।। २०५ ।। वेयणीयभवा एए, पनानाणा उ आइमे। अट्ठमंमि अलाभोत्था, छउमत्थेसु चोद्दसा ।।२०६|| निसेज्जा जायहणाऽऽकोसो, अरई इत्थिनग्गया । सकारो दंसणं मोहा, बावीसा चेव रागिसु ॥ २०७ ।। इति बंधहेतुलक्षणं चतुर्थ द्वारम् ।। अथ बंधविधिलक्षणं पंचमं द्वारम्-बद्धस्सुदओ उदए, उदीरणा तदवसेसयं संतं । तम्हा बंधविहाणे, भन्नते ईइ भणिप्रायव्वं ॥२०८॥ जा अपमत्तो सत्तट्ठबंधगा सुहुम छण्हमेगस्स । उवसंतखीणजोगी, सत्तण्हं नियट्टिमीसअनियट्टी (गीतिः)।२०९।। जा ॥२९५॥ सुहुमसंपराओ, उइन्न संताई ताव सव्वाइं । सत्तढुवसंते खीण, सत्त सेसेसु चत्तारि ॥ २१० ॥ बंधंति सत्त अट्ठ व, उइन्नसत्तद्गा सलमान For Private and Personal Use Only

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