Book Title: Panch Bhavnadi Sazzaya Sarth
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Bhanvarlal Nahta

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Page 93
________________ ७४ पंच भावना सज्झाय प्रकार के भावी भय को सोचता हुआ उसी वक्त घर को लौट आया। वहां पर भी माता पिता ने तो क्या, किंतु किसी तुच्छ सेवक ने भी आज इसका कोई सत्कार नहीं किया । इस प्रकार के अपमान को देखकर मंत्री ने आत्महत्या करने के लिये विष खा लिया, परन्तु मरा नहीं। फिर गले पर छुरा चलाया, परंतु गला कटा नहीं। फिर फांसी लेने लगा तो फंदा ही टूट गया, परंतु मरा नहीं फिर एक बड़ा वजनदार पत्यर गले में बांध कर पानी में डूबने गया, परंतु मरा. नहीं । फिर एक घास के ढेर में आग सुलगाकर उस में कूदा, परंतु जला नहीं । . हाय !! मौत भी इतनी महंगी कि आत्महत्या के लिये किये गये इतने सारे उपाय भी निष्फल चले गले। यों सोचता हुआ सिर पर हाथ रखकर बेठ गया। तब वह देवता पोट्टिला का रूप बनाकर कहने लगा; वे अमात्य तेतली ! मानो, कि सामने तो एक बड़ा गहरा खड्डा हो, दायें और बायें गाढ़ अंधकार हो, पीछे से एक मदोन्मत्त हाथी आ रहा हो, बीच में सन-सन करते हुये बाणों की वर्षा हो रही हो, ऐसी स्थिति में मानव कहां जाय और क्या करे। इसके उत्तर में दिवान बोला-जसे भूखे को अन्न का, प्यासे को पानी का, रोगी को औषध का, थके हुये को वाहन का, सहारा होता है, ठीक उसी प्रकार जिसके चारों ओर भय हो, उसे प्रव्रज्या का सहारा है। क्योंकि प्रवजित व्यक्ति को किसी प्रकार का भय नहीं सताता। हे अमात्य ! जब तुम इस प्रकार जानते हो और कहते भी हो, तो तुम्हें संयम का आश्रय ले लेना ही उचित है। इतना कहकर देवता तो अंतर्धान हो गया। पीछे से अमात्य तेतली को जातिस्मरण ज्ञान होने से संयम ग्रहण करने को तत्काल तैयार हो गया। फिर संयम लेकर, शुद्धभावों द्वारा इसका पालनकर, अष्ट कर्मो को खपाकर अमात्य तेतली मुक्तिपुरी में जा विराजे । . सार-संयम के सिवा कोई भी शरण-स्थान नहीं है। इस तरह अशरणभावना का आदर्श स्वयं चमक उठता है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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