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इस प्रगतिशील प्रक्रिया ने ही एक दिन प्रेमचन्द को जैन शासन का ओजस्वी प्रवक्ता बनाया.
आज मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में कलेक्टर के रूप में कार्यरत श्री शरदचन्द्र पण्ड्या शिवपुरी के अध्ययन - काल में आपके सन्निकट मित्र व सहपाठी थे. जयभिक्खु, रतिलाल दीपचन्द देसाई और कुछ समय के लिए श्री लालबहादूर शास्त्री को विद्या - दान देनेवाली इस शिक्षण - संस्था में ईसवी - सन् १९५० तक रहने के बाद प्रेमचन्द कलकत्ता चले आए. यहाँ एक रिश्तेदार के घर में रहते हुए आपने श्री विशुद्धानन्द सरस्वती उच्च माध्यमिक विद्यालय' में नौवीं व दसवीं कक्षा की शिक्षा पूरी की. इसके बाद अध्यात्मिक गतिविधियों की ओर निरन्तर प्रेरित करते मन ने आपको व्यावहारिक अध्ययन में आगे बढ़ने नहीं दिया.
भारत - भ्रमण ईसवी - सन् १९५२ के अन्त में प्रेमचन्द कलकत्ता से पुनः अजीमगंज चले आए. यहाँ आकर आपने स्वामी विवेकानन्द के साहित्य को काफी पढ़ा. अध्यात्म और जीवन- आदर्शों की दिशा में आगे बढ़ने के लिए स्वामी विवेकानन्द के विचारों ने भी प्रेमचन्द को उत्साहित किया. फिर शीघ्र ही प्रेमचन्द भारत के प्रमुख ऐतिहासिक नगरों की यात्रा पर निकल पड़े. आपने पाण्डिचेरी, देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, मथुरा, दिल्ली, आगरा, कोटा,
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