Book Title: Padmanandi Panchvinshatika
Author(s): Padmanandi, Gajadharlal Jain
Publisher: Jain Bharati Bhavan
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अशुद्धि ऐसाही आराधना सत्यवचनके सबदश मार्दव आर्जब एसी पीने से कुत्ता मास कटु बकाटानी कालवत्क सबन्धाय बिनादियुक्तितः रागहमवता मुण्डन बिगड़ता है संयजने स्वर्गकी प्राप्ति
शुद्धाशुद्धिपत्रम् । शुद्धि
| अशुद्धि
शुद्धि पृष्ठ पंक्ति | अशुद्धि
शुद्धि
पंक्ति ऐस ही हरिचन्द्र ने हरिचंद ने २४ १३
बागतिवतितत्व बागतिवर्तितत्त्व ८६ आराधना पितृबनभदो पितवनमदो ३५ ३ पायो
प्रायो
९१ सत्य वचनके बनावे बनाले
साम्बेधीति साथ्वधीति ९१ सर्वदेश
किमत्र *किमन्यत्र
धर्म
धर्म मार्दव प्रथाथि ग्रंथग्रंथि
११ विष्टकृछात् विष्टकृच्छ्रातृ. ९९ आजव
बोधप्रदीप बोधप्रदीप
भव्यङ्सा
भव्यहंसा ऐसी चूड़ामणिःस्तवाच चूडामणिस्तद्वाच:३६
बुधाः
बुधः खलन ने
तत्वायाप्त तत्त्वार्याप्त
वनवुन
वनेप्युनतं १० वोधदृश बोधशा
बुधः
बुधः
१०५ मांस
महिसकं महिंसर्क
धर्मकेयम्
धर्ममेकम् कटुक
सयम संयम
सेरामारु
सरोमारुतेः वकोटाना पात्रीमदम् पात्रमिदं
जातिनिवन्धनाय जातिनिबंधनाय १२० कालवक्त्रे
अकिंचिन्य आकिंचन्य
एसा
ऐसा संबन्धाय विदधति विदधति
अवाधमीत
अबाधमति १३२ ७ विनादियुक्तितः २१ सम्यस्थितां साम्यस्थितां
बुधैः सबंधो बुधः संबंधी १३८ ६ रागच्छूमवतां २३ व्यस्यानोंको व्याख्यानोंको ५० मूखान्
मूर्खान १४१ ३ मुंडन
तखमसमंजस तत्वमसंसंजसं ६४ ६ निवृत्ति हो निवृत्ति हो १४८ ५ विगड़ता है २२ १२ | संबंघसे
संबंधसे
समृतिकानने संमृतिकानने १५१ १० संयोजने
वंधनं बंधनं
यत्रो विधियो यना विधेयो १५५ २ नतोवर्गकी प्राप्ति२४ १० । कम्छाका ककछका ८३ ९ | महुविधा
मुहुर्बहुविधा १६.
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॥६॥
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