Book Title: Nyaya Dipika
Author(s): Bansidhar Shastri
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ ३ पृष्ट. ४१ . . . ४८ :: .. ५२ कैवल्यज्ञानका लक्षण. ... ... ... ... ... अवधि, मनःपर्यय ज्ञानोंमें पारमार्थिकत्वकी शंका तथा समाधान. ... ... ... ... ... ... इंद्रियजन्य ज्ञान ही प्रत्यक्ष हो सकता है यह शंका तथा इसका समाधान. ... ... ... ... ... अतीन्द्रिय ज्ञानको 'प्रत्यक्ष' शब्दद्वारा बोलनेका हेतु. ... महत् सर्वज्ञ सिद्ध करना.... ... ... सर्वज्ञके ज्ञानको अतीन्द्रिय होनेका हेतु. ... ... ... अर्हनको निर्दोष दिखाना. ... ... ... ... कपिलादिके सर्वज्ञ होने में बाधा. ... ... ... ... तीसरा प्रकाश । परोक्षप्रमाणका लक्षण. ... ... ... ... ... नैयायिकोंके परोक्षलक्षणमें दोष. परोक्षके स्मरणादि पांच भेद. ... ... ... ... स्मरणका खरूप. ... ... ... ... स्मरणको अगृहीतग्राही दिखाना.... ... प्रत्यभिज्ञानका लक्षणभेद.... ... .... प्रत्यभिज्ञानको प्रत्यक्षादिसे जुदा सिद्ध करना. उपमान प्रमाणका प्रत्यभिज्ञानके अन्तर्हित होना. तर्कज्ञान तथा व्याप्तिका खरूप. ... ... प्रत्यक्षादिसे इसकी भिन्नसिद्धि. ... ... ... अनुमानका लक्षण. ... ... ... ... ... नैयायिकोंके अनुमानलक्षणमें दोष. हेतुका लक्षण. अनुमानके साध्यका लक्षण. ... अनुमानके दो भेद. ... ... ... खार्थानुमानके अंग. ... . तीनप्रकारके अनुमान स्थलोंका वर्णन. . n ६३ ६ ६८ *32.

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 146