Book Title: Niyamsar Anushilan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 5
________________ सूक्ष्म विषयों का प्रतिपादक ग्रंथाधिराज है। आचार्य कुन्दकुन्द के इन ग्रंथों को समझने के लिए बौद्धिक पात्रता की आवश्यकता तो अधिक है ही, विशेष रुचि एवं खास लगन के बिना इन ग्रथों के हार्द को समझ पाना संभव नहीं है । पाठकों को अधिक धैर्य रखते हुए इन ग्रंथों का स्वाध्याय गहराई से करना चाहिए । अतः यह तो सर्वविदित ही है कि डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व नामक शोधप्रबंध पर सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर ने डॉ. महावीरप्रसाद जैन, टोकर (उदयपुर) को पीएच. डी. की उपाधि प्रदान की है। डॉ. भारिल्ल के साहित्य को आधार बनाकर अनेक छात्रों ने हिन्दी एम.ए. के निबंध के पेपर के बदले में लिखे जानेवाले लघु शोध प्रबंध भी लिखे हैं, जो राजस्थान विश्वविद्यालय में स्वीकृत हो चुके हैं। अरुणकुमार जैन बड़ामलहरा द्वारा लिखित डॉ. भारिल्ल का कथा साहित्य नामक लघु शोध प्रबंध प्रकाशित भी हो चुका है एवं अनेक शोधार्थी अभी भी डॉ. भारिल्ल के साहित्य पर शोधकार्य कर रहे हैं। अभी-अभी २८ अक्टूबर २००९ को मंगलायतन विश्वविद्यालय, अलीगढ ने आपको डी.लिट् की मानद उपाधि से अलंकृत कर स्वयं को गौरवान्वित किया है । आपके द्वारा विगत २८ वर्षों से धर्मप्रचारार्थ लगातार विदेश यात्रायें की जा रही हैं, जिनके माध्यम से वे विश्व के कोने-कोने में तत्त्वज्ञान का अलख जगा रहे हैं । इस पुस्तक की टाइपसैटिंग श्री दिनेश शास्त्री ने मनोयोगपूर्वक की है तथा आकर्षक कलेवर में मुद्रण कराने का श्रेय प्रकाशन विभाग के प्रबंधक श्री अखिल बंसल को जाता है । अत: दोनों महानुभाव धन्यवाद के पात्र हैं। प्रस्तुत संस्करण की प्रकाशन व्यवस्था और मूल्य कम करने में जिन दातारों ने आर्थिक सहयोग प्रदान किया है, उनकी सूची इसी ग्रंथ में अन्यत्र प्रकाशित है; उन्हें भी ट्रस्ट की ओर से हार्दिक धन्यवाद । सभी आत्मार्थी जिज्ञासु पाठक इस अनुशीलन का पठन-पाठन कर आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त करें - इसी मंगल भावना के साथ दि. १० नवम्बर २०१० ई. - ब्र. यशपाल जैन, एम. ए. प्रकाशनमंत्री, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर

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