Book Title: Niti Dipak Shatak
Author(s): Bhairodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bhairodan Jethmal Sethiya

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेठियामन्यमाला जो मनुष्य युक्तिसिद्ध वीतराग के वचनों को श्रद्धापूर्वक नहीं सुनते हैं, वे सत्यासत्य का निर्णय नहीं कर सकते । उन में तत्त्व अतत्व का निर्णय करने की शक्ति नहीं रहती, तथा कार्य अकार्य और गुण औगुण को नहीं पहचान पाते हैं ॥ १७ ॥ तावत्संमृतिजं भयं भवभृतां तावन्मनोमोहकत्तावद्वंदपराभवोऽतिबलवांस्तावत्कषायोगमः। तावदुर्गतिगामिता जनिजुषां तावत्प्रपञ्चव्यथा, यावज्जैनमते निरञ्जनपदे लग्नं न चित्तं मुदा ॥ १८॥ जब तक परमपुनीत जैनधर्म में जीवों का हार्दिक प्रेम नहीं होता है, तब तक ही संसार का भय रहता है. तब तक ही तीव्र कषाय का उदय कलह और अपमान होता है, और तब तक ही कुगति में गमन तथा संसार सम्बन्धी पीड़ा होती है ॥१८॥ खद्योते खगधीमनोहरमणेान्तिश्च काचेऽमले, मुक्ताहारमतिर्भुजङ्गमवरे फेनेषु शय्यामतिः । शत्रौ मित्रमतिः सुहृथरिमतिः क्ष्वेडे च पीयूषधीर्येषां जैनमतं विहाय कुमतान्यालम्पते मानसम्॥१६॥ जिनका चित्त जैनमत को छोड़कर अन्य कुमतों में प्रवृत्त होता है ,उनको जुग्न में सूर्य की भ्रान्ति होती है । निर्मल काच में मनोहर मणि का प्रतिभास होता है । साँप में मुक्ताहार का भ्रम होता है । फेन में शय्या का भास होता है । तथा शत्रु में मित्रबुद्धि For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56