Book Title: Nay Rahasya
Author(s): Yashovijay Gani
Publisher: Andheri Gujarati Jain Sangh

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Page 226
________________ नयरहस्ये कारणताविमर्शः २०९ नहीं होता है । यदि धात्वर्थ में प्रत्ययार्थ वर्तमानत्व का अन्वय न माना जाय तो इस प्रयोग को अवसर मिल जाता, क्योंकि प्रत्ययार्थ वर्तमानत्व का ज्ञाधात्वर्थ ज्ञान में अन्वय होगा ही नहीं तो अतीतज्ञान को लेकर के “घट जानाति" एसा प्रयोग होने में कोई बाधक नहीं होगा। प्रत्ययार्थ का धात्वर्थ में अन्वय मानने पर “ति" प्रत्ययार्थ वर्तमानत्व का ज्ञान में अन्वय करना अपेक्षिा रहता है जो अतीतज्ञान में बाधित है, अतः उक्त प्रयोग नहीं होता है। यहाँ यह कहा जाय कि-'प्रत्ययार्थ वर्तमानत्व का यदि धात्वर्थ में अन्वय हो तो पाकारम्भ समय में 'पचति' ऐसा जो प्रयोग होता है, वह नहीं होगा, क्योंकि पाकारम्भ काल में पाक तो रहता नहीं है, तब प्रत्ययार्थवर्तमानत्व का कहाँ अन्वय होगा ?'-परन्तु यह कहना ठीक नहीं है क्योंकि पाक के आरम्भक क्षण से लेकर जब तक पाक की परिसमाप्ति होती है, वहाँ तक एक स्थूलकाल को स्वीकार कर पाकारम्भसमय में भी “पचति" ऐसा प्रयोग हो सकता है। उस स्थूलकाल के अन्तर्गत बहुत से सूक्ष्मकाल यद्यपि रहते हैं तो भी उन कालों की विवक्षा से यह प्रयोग नहीं माना गया है किन्तु स्थूल एक काल की विवक्षा से यह प्रयोग होने में कोई बाधक नहीं हैं, क्योंकि उस स्थूलकाल में पाक रहता है और उस में तिप्रत्ययार्थ वर्तमानत्व का अन्वय भी सम्भवित है । इस स्थिति में आनशप्रत्ययार्थ वर्तमानत्व और निष्ठाप्रत्ययार्थ अतीतत्व, इन दोनों का परस्पर विरोध होने से “कृ” धात्वर्थ क्रिया में युगपत् अन्वय नहीं हो सकता है। अतः 'क्रियमाण कृत ही है, इस तरह की “क्रियानय" की मान्यता युक्त नहीं है।" परन्तु यह आशंका भी ठीक नहीं है। क्योंकि. स्थलकाल को लेकर पाक के आरम्भकाल में "पचति" इस प्रयोग का उपपादन किया जाय तो, पाकारम्भकाल से पूर्वकालघटित एक स्थूलकाल मानकर पाकारम्भ से पूर्वकाल में भी "पचति" ऐसे प्रयोग का प्रसंग हो जायगा । कारण, “विद्यमानकाल" पद से उस कल्पित स्थूलकाल को ग्रहण करेगे, तवृत्तित्वरूप वर्तमानत्व पाक क्रिया में रहेगा ही। यदि यह कहा जाय कि-'पाकारम्भ पूर्वकाल में “पचति" इसतरह का व्यवहार नहीं होता है, इसलिए पाकारम्भ पूर्वकालघटित स्थूलकाल का ग्रहण नहीं करेंगे, अतः पाका. रम्भपूर्वकाल में "पचति" इसतरह के प्रयोग का प्रसंग नहीं आवेगा और पाकारम्भकाल में तो "पचति" ऐसा व्यवहार होता है, इसलिए पाकारम्भकालघटित स्थल काल को लेकर पाकारम्भकाल में “पचति" ऐसे प्रयोग में भी कोई बाधक नहीं होगा ।'-परन्तु ऐसा कहना भी ठीक नहीं होगा क्योंकि व्यवहारानुकूल प्रयोग मात्र से वस्तु की मि नहीं मानी जाती है। यदि वैसा मान ले, तो पुरुषव्यक्ति में "यह बाघ है" ऐसा व्यवहार होता है और "पुरुषो व्याघ्रः” ऐसा प्रयोग भी होता है, इस व्यवहारानकल प्रयोग से पुरुष में भी व्याघ्रत्व की सिद्धि हो जायगी । अतः पाकारम्भककाल में “पचति" इसतरह का व्यव ार होता है और तदनुकूल जो “पचति" यह प्रयोग होता है, उस प्रयोग मात्र से पाकारम्भकालघटित स्थूलकाल की सिद्धि नहीं हो सकती है, तब तो पाकारम्भसमय में “पचति" ऐसा प्रयोग न होगा । अतः प्रत्ययार्थ वर्तमानत्व और

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