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चारों को जातिचतुष्क कहते हैं । जातिचतुष्क नाम कर्म के उदय से जीव को ये चारों जातियाँ मिलती है।
६३. एकेन्द्रिय : जिस कर्म के उदय से जीव को पृथ्वीकाय आदि एक इन्द्रिय वाले शरीर में जन्म मिलता है, उस शरीर को एकेन्द्रिय जाति कहते है।
६४. बेइन्द्रिय : जिस कर्म के उदय से शंख, कोडी आदि दो इन्द्रिय वाले शरीर की प्राप्ति होती है, वह बेइन्द्रिय जाति नामकर्म है।
६५. तेइन्द्रिय : जिस कर्म के उदय से जूं, खटमल आदि तीन इन्द्रिय वाले शरीर की प्राप्ति हो, वह तेइन्द्रिय जाति नामकर्म है।
६६. चतुरिन्द्रिय : जिस कर्म के उदय बिच्छू, भ्रमर, मक्खी आदि चार इन्द्रिय वाला शरीर प्राप्त हो, वह चतुरिन्द्रिय जाति नामकर्म है।
६७. अशुभविहायोगति : जिस कर्म के उदय से जीव की चाल गधे या उँट जैसी अशुभ हो, वह अशुभ विहायोगति नामकर्म है।
६८. उपघात : जिस कर्म के उदय से जीव अपने ही अवयवों (छठ्ठी अंगुली, चोर दांत, पटजीभ) से क्लेशित हो, वह उपघात नामकर्म है।
६९-७२. अप्रशस्त वर्णचतुष्क : अप्रशस्त अर्थात् अशुभ । वर्णचतुष्क अर्थात् वर्णादि चार भेद-वर्ण-गंध-रस-स्पर्श । इनके कुल २० भेदों में से ९ भेद अप्रशस्त है।
६९. अप्रशस्त वर्ण : जिस कर्म के उदय से जीव को कृष्ण या नीलवर्ण प्राप्त हो, वह अप्रशस्त वर्ण नामकर्म है।
७०. अप्रशस्त गंध जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर में से लहसून जैसी दुर्गंध आती है, वह अप्रशस्त गंध नामकर्म है ।
७१. अप्रशस्त रस : जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर का रस तीखा या कडवा हो, वह अप्रशस्त रस नामकर्म है।
७२. अप्रशस्त स्पर्श : जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर का स्पर्श भारी, खुरदरा, रुक्ष और शीत हो, वह अप्रशस्त स्पर्श नामकर्म है।
७३-७७. अप्रथम संहनन : प्रथम को छोडकर पांच संघयण की प्राप्ति
होना।
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श्री नवतत्त्व प्रकरण