Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 9
________________ जैनतत्त्व : आधुनिक संदर्भ बन सकती । डेकार्ट ने आत्मा को द्रव्य माना। काण्ट ने इनका खंडन किया। कांट ने द्रव्य की एक निश्चित परिभाषा बना ली और उसके आधार पर आत्मा के द्रव्यत्व का खंडन कर दिया। द्रव्य की परिभाषा है-जिसमें भार है, जिसमें द्रव्यमान है, जिसका आयतन है और जो ज्ञेय होता है, वह द्रव्य है । आत्मा इसलिए ज्ञेय नहीं है कि उसमे भार नहीं है और उसका कोई आयतन भी नहीं है। हम इस पर विमर्श करें। वस्तुतः द्रव्य की भाषा स्थूल पुद्गल के आधार पर ही गढ़ी गई है । आज भारहीन परमाणु भी खोज लिए गए हैं। उनमें भार नहीं है फिर भी वे द्रव्य हैं । स्थान को वही रोकता है, जो स्थूल है । सूक्ष्म द्रव्य स्थान को रोकता नहीं है । अनेकांत के अनुसार ज्ञाता भी द्रव्य है। उसके द्रव्य होने में कोई बाधा नहीं है । भारहीन भी द्रव्य है और भारयुक्त भी द्रव्य है । ज्ञेय तो सब होता ही है। ज्ञाता को ज्ञेय बनने में भी कोई कठिनाई नहीं है और उसके द्रव्य बनने में भी कोई कठिनाई नहीं है। सार्थक स्वप्न . इस बिन्दु पर आईंस्टीन का यह स्वप्न सार्थक होता है-मैं ज्ञाता को जानना चाहता हूं । यह स्वप्न पूरे अध्यात्म जगत् का स्वप्न रहा है। जिसके मन में ज्ञाता को जानने की अभीप्सा न हो, वह पूर्ण आध्यात्मिक नहीं बन सकता । ध्यान किसलिए है ? यदि ध्यान मात्र मानसिक शांति के लिए ही है तो उसका अर्थ बहुत छोटा हो जाएगा। शारीरिक एवं मानसिक बीमारियों की समाप्ति ध्यान का प्रासंगिक परिणाम है । ध्यान का मूल उद्देश्य है-ज्ञाता को जानना। जब तक मन में यह ललक नहीं जागेगी, ध्यान आगे नहीं बढ़ पाएगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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