Book Title: Navgrah Arishta Nivarak Vidhan
Author(s): Balmukund Digambardas Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 18
________________ . नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान - धत्ता छन्द पूजन प्रभुकी कीजे, दोष हरीजे, छीजे पातक जन्म जरा। सुख होय अविकारी ग्रहदुखहारी, भवजल भारी नीरतरा॥ - ॐ ह्रीं भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय महाअर्घ निर्वपामीति स्वाहा। इतिश्री भौमअरिष्टनिवारक श्री वासुपूज्यजिनपूजन संपूर्ण। बुधग्रह अरिष्ट निवारक अष्ट जिनपूजा सौम्य ग्रह पीड़ा करै, पूजों आठ जिनेश। आठ गुण जिनमें लसें, नावत शीश सुरेश॥ विमलनाथ जिन नमों, नमो जु अनन्तनाथ जिन। धर्मनाथ जिन बंद बंद हौं, शांति शांति जिन॥ कुन्थु अरह जिन सुमरि, सुमरि पुनि वर्धमान जिन। इन आठों जिन जजों, भजों सुख करन चरन तिन॥ बुध महाग्रहं अशुभता धरत करत दुख जोर जब। आह्वाननं कर तिष्ठ तिष्ठ, सन्निधि करहु तव॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिन अत्र अवतर 2 संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं, परिपुष्पांजलि क्षिपेत् / . अथाष्टक __ (गीतीका छन्द) . हेम झारी जड़ित मन जल भरों क्षीरोदक तनं। धार देत जिनराज आगे, पाप ताप जु नाशनं॥ .

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