Book Title: Nandisutra Mahatmya
Author(s): Gyansundar
Publisher: Shah Maneklal Anupchand
View full book text
________________
[ १९
भवतिय मणुस्साणं० । गोयमा इड्ढीपत्त अपमत
में टिटि पजन्तग संखिज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवकंतिय मणुस्माणं० उष्पज्जह नो अणिड्ढीपत्त अपभत्त सजय सम्मदिट्टि पज्जत्तग संखिज्ज वासाउय कम्मभूमिय गग्भवकंतिय मणुस्साणं ।
मणपज्जव नाणं समुप्पज्जइ तं च दुविहं उप्पज्जइ तं जहा उज्जुमई च विलमई च तं समासभो चव्विहं पन्नत्तं तं जहा दव्वओ । खित्तओ । कालओ । भावओ । तत्थ दव्वओणं उज्जुमईणं अनंते अनंत पएसिए खंधे जाणइ पास तं चैव विउलमई अमहिय तराए विउलतराए विमुतराए वितिमिरतराए जाणइ पास । खित्तओणं उज्जुमई अजहनेणं अंगुलस्स असंविज्जय भागं उकासेणं अहे जावइमी से रयणप्पभाए पुढवीए उवरिम हेडिल्ले खुड्ढग पयरे उड्ढं जाव जोइसस्स उवरिमतले तिरियं जाव अन्तो मणुस खिते अड्ढाइजेलु दीवसमुदे पनरस्त कम्मभूमिसुतीसाए अम्मभूमिसु छपन्नाए अन्तरदीवगेषु सन्निपंचेंदिआणं पज्जन्तगाणं मगोगए भावे जागइ पासइ नं चैत्र

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60