Book Title: Namotthunam Ek Divya Sadhna
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Choradiya Charitable Trust

View full book text
Previous | Next

Page 240
________________ समझाना चोयणा कहलाता है। निष्ठुर हुए शिष्य को धिक्कारते हुए उसका हित समझाना पडिचोयणा हैं। प्रारंभिक ज्ञान में यह गुरु शिष्य की व्याहारिकता होती है। पूर्णज्ञान की प्राप्ति केवल स्वधर्मि होती है। याद तो करो सर्वज्ञ बनते समय की प्रभु की अद्भुत दशा को। वैशाख शुद्ध दशम का वह पुण्य बेला जब प्रभु गोदोहासन में केवल अंगूठे के उपर ऐसी नदी के तटपर बिराजमान थे जिसकी बालु याने रेत अत्यंत ऋजु थी। नदी का पानी बदलती हुई पर्यायों का एहसास कराता था। यह तो सब प्रभु की बाह्यदशा हैं। प्रभु की भीतर की दशा तो अद्भुत थी। निस्संगं यन्निराभासं, निराकारं निराश्रयम् । पुण्यपापविनिर्मुक्तं, मनः सामायिकं स्मृतं ॥ - प्रभु नि:संग थे। अकेले थे। प्रभु ने अकेले दीक्षा ली थी और अकेले ही ज्ञान प्राप्त किया था। भगवान ऋषभदेव ने चार हजार पुरुषों के साथ दीक्षा ली थी। मल्लिनाथ और पार्श्वनाथ भगवान ने तीन सौ पुरुषों के साथ दीक्षा ली थी। वासुपूज्य भगवान ने छह सौ पुरुषों के साथ दीक्षा ली थी। अन्य उन्नीस भगवान ने हजार पुरुषों के साथ दीक्षा ली थी। केवल भगवान महावीर ने ही अकेले दीक्षा ली थी। परमात्मा की दूसरी दशा हैं निराभासता। आत्मभाव में आनेपर किसी प्रकार का आभास नहीं रहता हैं। चाहे वस्तु हो या व्यक्ति जिसमें अपनापन नहीं है तो आभास भी नहीं हैं। जो अपना नहीं है उसे अपना मानने का आभास होता है। जैसे नमीराजर्षी के बारे में कहा हैं कि जब मिथीला जल रही थी और उनको कहा गया आपकी नगरी जल रही है। जानते हो उन्होंने क्या उत्तर दिया? मिहिलाए डज्झमाणीए, न मे डज्झइ किंचणं । जो जल रहा है वह मेरा नहीं हैं, जो मेरा है वह जलता नहीं है। निजिवृत्ति के कारण प्रवृत्ति का आभास होता है। व्यक्ति या वस्तु के साथ वृत्तिका रिश्ता बडा अजीब सा है। कुछ लोग कहते हैं संसार ऐसा क्यों हैं ? ये आकर्षण रहने नहीं चाहिए। पर ऐसा कैसे हो सकता है? आपको किसी ने आम दिया। आपको आम ही खाना हैं आम खाते खाते आप अंदर गुठलीतक पहुंच गए। क्या करेंगे आप? आम देनेवाले के साथ गुस्सा करेंगे ? गुठली उसको वापस देने का प्रयास करोंगे ? या गुठली फेंककर निवृत्त हो जाओग ? आम के साथ गुठली आती ही हैं ऐसा आपको स्वीकारना ही चाहिए। मैं शादी करनेवाली लडकियों से मैं कहती हूँ कि, पति के साथ साँस-ससुर, ननंददेवर आदि फ्री हैं। सिर्फ पति को ही नहीं इन सबको अपना मानना। एक तरफ तो हम कहते हैं अपना कुछ भी नहीं हैं। पर मोहक और आकर्षक संसार वीतराग भाव नहीं देता। उसे हमें हमारे भीतर ही निर्मित करना है। इस भाव का निर्माण होना निराभासता को आमंत्रण है। परमात्मा की तीसरी दशा हैं निराकारता। आकार के भीतर एक निराकार चेतना हैं। निराकार चेतना के कारण ही आकार का संसार हैं। संबंधातीत चेतना की इस व्यवस्था को समझ लेना ही साधना है। आकार निराकार को नहीं चलाता, निराकार आकार को चलाता है। सारे संबंध केवल मात्र आकार से अभिव्यक्त होनेपर होता है। चौथी दशा निराश्रयता है। परमात्मा की यह दशा अद्भुत है। तीर्थ में, संघ में, समाचारी में शासन में सर्वत्र इस दशा को महत्त्वपूर्ण माना गया है। साधना मार्ग में आनेवाली कठिनाइयों के समय साथ रहकर प्रभु के उपर 238

Loading...

Page Navigation
1 ... 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256