Book Title: Namaskar Mantra Author(s): Fulchandra Shraman Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti View full book textPage 9
________________ हुए बिना नही रह सकता । उसी विद्युत् के प्रभाव से अपने समवसरण में वे विचार-प्रेषण की क्रिया प्रयुक्त करते है, उनकी सन्निधि मे आकर किसी का हृदय-परिवर्तन न हो यह हो नहीं सकता, अत: एक ही समवसरण में अनेक भव्य जीव संसार से विरक्त होकर दीक्षा के लिए प्रस्तुत हो जाते थे, वे किसी को संसार-त्याग की प्रेरणा नही देते थे, उनकी तपोमयी विद्युत-धारा सबके लिए स्वय ही प्रेरिका शक्ति बन जाती थी। रोहिणेय चोर था, उसके पिता ने कहा थामहावीर जहा बैठे हो वहां से मत निकलना, उनका शब्द मत सुनना । वह सदा बचता रहा, परन्तु एक दिन भूल से वह समवसरण के पास से गुजरा, कुछ शब्द कान में पड़ गए, बस सहसा रूपान्तरण हुमा, उसका दिल बदल गया और रोहिणेय एक महान् सन्त बन गया । वस्तुत: महावीर दिव्य शक्ति के ऐसे महास्रोत थे जिनका शरीर एक दिव्य तेज का केन्द्र बन गया था, उनके शरीर की ध्वनि तरंगो के प्रवाह मे जो भी पाया वही उनका बन गया। इसलिए प्राचीन कथानक कहते हैं-जहां अहिंसा-पुरुष विराजमान हो जाते है, वहा सब जीव पारस्परिक सहज वैर का भी परित्याग कर देते है। यह ठीक है कि आज कल ऐसे विद्युत -यन्त्र भी आविष्कृत हो गए हैं जो दूसरों को प्रभावित कर सकते हैं, परन्तु उनकी विद्युत्-धारा के पीछे जड़ता है चेतना नही है । [पांचPage Navigation
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