Book Title: Munhata Nainsiri Khyat Part 03
Author(s): Badriprasad Sakariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 253
________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २४५ हमै सिवो पातसाहजीरी चाकरी करै । पोतसाहजी सिवै ऊपर घणी महरवानगी करै। एक दिन पातसाहजी सिवैनू फुरमायो-'तू मांग । तोनू मांगै सो __ ठोड़ द्यां । ताहरां सिवै अरज कीवी-'पातसाह सलामत ! महरवांन ' छो तो हं म्हारो उतन पाऊं । तिणं ऊपर पातसाह सिवैन उतनरी तसलीम कराई नै पातसाह कह्यो-'थारो उतन कासू छै ?'' ताहरां पातसाहजीसू सिवै अरज कीवी-'आमद देसमे आतरीरो परगनो छै सु माहरो उतन छै ।' तिण ऊपर सिवानूं उतनरो पटो करोय दियो । घोड़ो सिरपाव दियो। घणी दिलासा देनै देसन विदा कियो। साहजादी पण इणनू विदा हुतैनू घोड़ो सिरपाव देय, रुपिया हजार तीस-चाळीसरो माल देनै विदा कियो। फुरमायो-'हूं थारी बहन छू । तू म्हारो भाई छ । तू खातर जमै राखै । हू तोनू म्होटो करीस।' सिवानू रावरो खिताब देरायो । __ ताहरां सिवे उठासू देसनै चढ खडियो। वीच मे आवतै दस माणस रूड़ा चाकर राखिया। पटा लिख-लिख दिया। असवार ४००सू घरे आयो । पछै सारा परगना मांहै जायन वडो अमल कियो । 'धरती माहै राखण जोगो हुतो सु राखियो । काढण जोगो हुतो सु काढियो ।' धरतीरो वडो सलूक कियो । आपरो जमीयत खरी कीधी। सिसो ___तू मागे सो ही जगह तेरेको दे दें। 2 वादशाह सलामत ! आप यदि महरवान हैं तो मुझे मेरा वतन (देश) मिले । 3 इस पर बादशाहने शिवा के वतन (देश) की तसलीमकी और बादशाहने कहा कि तुमारा वतन कौनसा है ? 4 घोडा सिरोपाव दिया और खूब सान्त्वना देकर देशको विदा किया। 5 तू खातिरजमा रखना, मैं तुझे वडा बनाऊगी और शिवाको रावका खिताब दिलवाया। 6 तव शिवा वहासे देशको रवाना हुआ । वीचमे पाते हुए दस अच्छे आदमियोको चाकर रखा । गावोके पट्टे लिख-लिख कर दिए । इस प्रकार ४०० सवारोको साथ लेकर अपने घर आया । 7 फिर सारे परगनेमे जाकर वडा अमल जमाया। देशमे जो रखने योग्य था उसे रखा और निकालने योग्य था उसे निकाल दिया। 8 देशका वडा अच्छा प्रवन्ध किया। 9 अपने समुदाय को दृढ किया।

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