Book Title: Multidimensional Application of Anekantavada
Author(s): Sagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
View full book text
________________
Multi-dimensional Application of Anekantavāda
अत्यन्त भिन्न होते हुए भी तीनों में तर्क की गहराई एवं तर्क की दिशा बहुत कुछ समान है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि आगामी सारणियों में यह प्रयास किया गया है कि भौतिक विज्ञान से प्राप्त तर्क का उपयोग आध्यात्मिक जीवन एवं व्यावहारिक जीवन में हो सके।
464
उमास्वाति के अनुसार, 'सम्यग्दर्शनज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्ग: ९ अर्थात् सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र ( की एकता ) मोक्षमार्ग है। इसी को ध्यान में रखते हुए आगामी सारणियों में विषयवस्तु ऐसी चुनी है कि पाठक को यह वर्णन सच्चा श्रद्धान (सम्यग्दर्शन), सच्चा ज्ञान (सम्यग्ज्ञान) एवं सच्चारित्र प्राप्ति में सहायक सिद्ध हो।
विज्ञान
एक अपेक्षा जल द्रव रूप है।
जल वाष्प रूप है।
जल ठोस रूप है।
दूसरी अपेक्षा से जल न तो ठोस है, न द्रव है और न गैस है। ठोस द्रव या गैस तो जल के कई अणुओं के समुदाय के शक्ल के नाम हैं। जैसे एक ईंट न तो मकान होती है, न दुकान होती है और न ही मालगोदाम होती है। कई ईंटें किस रूप में एकत्रित होती हैं उसके
अनुसार मकान, दुकान या मालगोदाम नाम बनता है।
इसी प्रकार जल का एक अणु न तो ठोस होता है,
Jain Education International
सारणी क्रं० १ सूक्ष्म एवं स्थूल
अध्यात्म
एक अपेक्षा
जीव मनुष्य है।.
जीव हाथी है।.
जीव देव है । ...
एक अपेक्षा
मैं धनी हूं। मैं गरीब हूं। मैं अफसर हूं।.. मेरे पद के अनुरूप मुझे अपने कर्त्तव्य का
पालन एवं लोकोपकार करना है व अपने में सुधार करना है। दूसरी अपेक्षा से
दूसरी अपेक्षा से
जीव न मनुष्य है, न देव मैं न तो धनी हूं, न गरीब हूं, है, न हाथी है, न अफसर हूं। ये बाहरी संयोग मनुष्य, हाथी, देव आदि क्षणिक हैं। अतः इन बाहरी तो जीव एवं कई पुद्गल संयोगों के आधार पर न तो परमाणुओं के समुदाय के अभिमान करूं और न ही अपने नाम हैं। को छोटा समझू ।
व्यावहारिक जीवन
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org