Book Title: Mulsutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

View full book text
Previous | Next

Page 337
________________ * ३३२ * मूलसूत्र : एक परिशीलन (४) आचार्य भद्रबाहु ही उस समय श्रमणसंघ के मात्र एक आचार्य थे, जिन्हें चतुर्दश पूर्व का सम्पूर्ण ज्ञान था। वे उस समय नेपाल में महाप्राण ध्यान की साधना कर रहे थे। स्थूलभद्र आदि मुनियों को ८ वर्ष तक उन्होंने प्रतिदिन ७ वाचनाएँ देना स्वीकार किया था।१५९ ।। (५) आचार्य स्थूलभद्र के आचार्यत्वकाल के ४४ वर्ष बीत जाने पर वीर निर्वाण सं. २१४ में श्वेताम्बिका नगरी में आषाढाचार्य के शिष्यों से तीसरे निह्नव अव्यक्तवादी की उत्पत्ति हुई थी। (६) भारतीय इतिहास की दृष्टि से आर्य स्थूलभद्र का युग राज्य-परिवर्तन अथवा राज्य-विप्लव का युग रहा। भारत पर यूनानियों के आक्रमण, महान् राजनीतिज्ञ चाणक्य का अभ्युदय, नन्दराज्य का पतन और मौर्य राज्य का उदय, ये सब आर्य स्थूलभद्र के काल की प्रमुख राजनैतिक घटनाएँ हैं। वीर निर्वाण २०० में भारत के उत्तर-पश्चिम प्रदेश में यूनान के शाह सिकन्दर (एलेक्जेंडर दी ग्रेट) ने एक प्रबल सेना लेकर आक्रमण किया। ईसा पूर्व ३२३ में बैबिलोन पहुँचते-पहुँचते सिकन्दर की मृत्यु हो गई थी।१६० (७) स्थूलभद्र आचार्य के दो युगप्रधान शिष्य थे-आर्य महागिरि एवं आर्य सुहस्ती।६१ जिनकल्पतुल्य साधनाशील आचार्य महागिरि : नवम आचार्य आर्य महागिरि एक मेधावी तथा जिनकल्पतुल्य साधना करने वाले महामना आचार्य थे। उनका जन्म वीर निर्वाण सं. १४५ (विक्रम पूर्व ३२५) में हुआ। वे एलापत्य गोत्रीय थे। ३० वर्ष की उम्र में उन्होंने आचार्य स्थूलभद्र के समीप दीक्षा ग्रहण की। आचार्य हेमचन्द्र के मतानुसार आर्य महागिरि और आर्य सुहस्ती इन दोनों का लालन-पालन आर्या यक्षा ने किया था। इस कारण इन दोनों श्रमणवीरों के नाम के साथ 'आर्य' शब्द जुड़ गया है।१६२ ___ कतिपय विद्वानों का यह भी मन्तव्य है कि जिन मुनियों के साथ आर्य शब्द संलग्न है, वह इनके तप का अनुसरण कर किया गया है, परन्तु हमारी दृष्टि से यह केवल कल्पना ही है, क्योंकि महागिरि के पूर्व भी श्रमणों के नाम के साथ आर्य शब्द व्यवहृत हुआ है। दीक्षा ग्रहण के पश्चात् आर्य महागिरि ने आर्य स्थूलभद्र से १० पूर्वो का अध्ययन किया। जीवन की सान्ध्य-बेला में आर्य महागिरि और आर्य सुहस्ती, इन दोनों को आचार्य स्थूलभद्र ने अपना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390