Book Title: Mulshuddhi Prakaranam Part 02
Author(s): Dharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Shrutnidhi
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मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः
जह 'एत्थं संसारे सकम्मफलभोइणो इमे जीवा । पाविति सुहं दुक्खं जं विहियं अण्णजम्मम्मि ' ॥२१७||
तं सुणिय वीरदासो पुच्छर करसंपुढं सिरे काउं । "भयवं ! किमण्णजम्मे विहियं मह भाइधूयाए ? ॥२१८॥
जेणं सीलजुया विहु पत्ता एवंविहं महादुक्खं" । सूरी वि भणइ " सावय ! जं पुटं तं निसामेह ॥ २१९ ॥ अत्थि इह भरहवासे, मज्झिमखंडम्मि पव्वओ विंझो । उत्तुंगसिहरसंचयसमाउलो खलियरविपसरो ॥ २२०॥ तत्तो इमा पसूया, महानई नम्मया जइणवेगा । तीए य अहिट्ठाइगदेवी विं हु नम्मया अत्थि ॥२२९॥ सा मिच्छत्तोवहया नम्मयतडसंठियं महासत्तं । धम्मरुई अणगारं दट्ठूणं कुणइ उवसग्गे ॥२२२॥ नाणाविहे सुघोरे निच्चलचित्तं मुणि मुणेऊण । उवसंता संजाया सम्मत्तधरा ततो चविउं ॥ २२३ ॥ एसा हु नम्मयासुंदरि त्ति जाया सुया उ तुम्हाण । पुव्वभवभासेण य एईए नम्मया इट्ठा ॥ २२४॥ जं तइया सो साहू खलीकओ दुट्ठचित्तजुत्ताए । तं सुनिकाइयकम्मं भुत्तं एयाइ दुव्विसहं " ॥ २२५॥ तो सोउं नियचरियं संजायं तीए जाइसरणं तु । संवेगगयाए तओ गहिया दिक्खा गुरुसमीवे ॥२२६॥ दुक्करतवनिरयाए ओहिण्णाणं इमीए उप्पण्णं । तत्तो पवत्तिणित्ते ठविया सूरीहिं जोग्ग ति ॥ २२७॥ विहरंती य कमेणं संपत्ता कूववंदनगरम्मि | सिरिदत्ताए गेहे वसहिं मग्गित्तु उत्तरिया ॥२२८॥ बहुसाहुणीहिं सहिया कहइ य धम्मं जिणिदपण्णत्तं । सुइ महेसरदत्तो सिरिदत्तासंजुओ निच्चं ॥२२९॥
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